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Raigarh News : लंबे समय तक किया है काम, असर पड़ेगा

  • प्रखर आदिवासी नेता और पूर्व सांसद डॉ. नंदकुमार साय ने खास बातचीत में बताई अपनी योजना

रायगढ़, 31 अगस्त। भाजपा की जड़ों को सींचने वाले आदिवासी तबके के दिग्गज नेता डॉ. नंदकुमार साय अब कांग्रेस में हैं। परिस्थितियां भले कैसी भी हों, लेकिन उनके जनाधार को कोई चुनौती नहीं दे सका। अब वे उसी वजूद को दोबारा इस विधानसभा चुनाव में सदन तक पहुंचाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने लैलूंगा, कुनकुरी और पत्थलगांव सीट से टिकट की दावेदारी भी कर दी है। उनका कहना है कि लैलूंगा क्षेत्र में वे लंबे समय तक लोगों के बीच काम करते रहे हैं। उसका असर चुनाव में जरूर पड़ेगा।

डॉ. नंदकुमार साय के अचानक से भाजपा छोडक़र कांग्रेस के साथ आ जाने से आदिवासी समाज में पैठ रखने का दावा करने वाले बड़े-बड़े दिग्गजों का राजनीतिक समीकरण हिल गया है। काफी समय से सक्रिय राजनीति से दूर रखे गए साय इस बार पहली पंक्ति पर बैठे दिखाई पड़ रहे हैं। उन्होंने एक चैनल को दिए इंटरव्यू में कई बातें खुलकर कही हैं। उनसे पूछा गया कि लैलूंगा से टिकट मिले तो क्या प्राथमिकता होगी। उन्होंने कहा कि लैलूंगा, कुनकुरी और पत्थलगांव से फॉर्म जमा कर दिया है। देखते हैं कहां से, कैसी परिस्थति बनती है। लैलूंगा और तमनार क्षेत्र से पुराना रिश्ता है। यहां के गांव-गांव घूमकर लोगों की समस्याएं सुलझाई हैं।

अलग-अलग समाजों के मुद्दे होते थे, जिनको पूरी तरह जानकर हल निकालते थे। आम लोगों के साथ लंबे समय से संबंध रहा है। अलग-अलग स्तर के बहुत से काम किए हैं। अगर टिकट मिलती है तो प्रभाव जरूर पड़ेगा। चुनाव अलग होता है, तो देखते हैं क्या होता है। उनका कहना है कि भाजपा के बाद अब कांग्रेस में आ गए हैं। जहां भी रहे हैं, वहां उन परिस्थितियों के साथ रहे। ऐसी कोशिश हमेशा से रही है और अब भी जारी है। उन्होंने कहा कि दावेदारी तो करनी ही है। चुनाव लडक़र मैदान में रहेंगे तो आम लोगों के बहुत काम आसान होंगे।

नौकरी नहीं करने दी दादा ने
डॉ. साय ने स्नातकोत्तर के बाद सरकारी नौकरी में भाग्य आजमाया। सीओ की नौकरी लगी तो दादा रामेश्वर साय ने कहा कि अगर उधर नौकरी करोगे तो हमारी नौकरी कौन करेगा। उनका कहना था कि उत्तम खेती, मध्यम बाण। वे नौकरी के पक्ष में नहीं थे। पीएससी में भी नायब तहसीलदार और डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयन हुआ तब भी दादाजी चुप हो गए। इसलिए नौकरी ही नहीं की। तब नौकरी में कोई जाना नहीं चाहता था, लेकिन अब मारामारी मची हुई है।

जिसने कठिन समझा, वही जीतेगा
डॉ. साय से पूछा गया कि आईएएस ऑफिसर नौकरी छोडक़र चुनाव में क्यों उतर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह तो उन्हीं से पूछना पड़ेगा। चुनाव लडऩे का काम आसान नहीं है। बहुत कठिन है। सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है। जिसने इसे साधारण समझ लिया तो वह नहीं जीत सकता। जिसने कठिन समझा और तैयारी की तो वह हार नहीं सकता। पहले को एक साल पहले से तैयारी शुरू कर देते थे। लोगों के पांव छूना शुरू कर देते थे तो सब पूछते थे कि चुनाव आने वाला है क्या। चुनाव लडऩे वाला अगर अपने को निरीह, कमजोर, सबसे निम्न मान लिया तो वह जीतेगा ही। एकदम जमीन से जुड़ा रहना पड़ता है।

कांग्रेस ने बहुत से काम अच्छे किए हैं
उन्होंने कांग्रेस सरकार की तारीफ करते हुए कहा कि इस सरकार ने लोगों के लिए कई काम बहुत अच्छे किए हैं। रामवनगमन पथ, कौशल्या माता धाम निर्माण के अलावा साधारण कर्मचारियों के हित में काम किए हैं। उन्होंने कांग्रेस पार्टी में सबसे अच्छा नेता सीएम भूपेश बघेल को बताया है। भाजपा में उन्होंने रामलीला मैदान में एक सभा का जिक्र कर कहा कि स्व. अटल बिहारी वाजपेयी सबसे बड़े नेता थे। डॉ. साय उनको सबसे ज्यादा मानते थे।

ऐसे हुई नमक से दूरी
डॉ. साय ने 53 साल से नमक को हाथ तक नहीं लगाया है। इसके पीछे वजह भी बताई। जब वे कॉलेज में पढ़ते थे तो एबीवीपी से छात्र राजनीति शुरू की। तब बिरहोर, पहाड़ी कोरवा जैसे आदिवासी समुदाय में शराब का बहुत चलन था। ये समुदाय बहुत अधिक शराब पीते थे और इस वजह से तबके का पतन भी हो ेरहा था। तब उन्होंने इसके खिलाफ अभियान शुरू किया। लेकिन शराब माफिया ने अभियान बंद कराने के लिए साजिश की। आदिवासियों ने कहा कि जैसे कोई खाने में नमक नहीं छोड़ सकता वैसे ही वे शराब नहीं छोड़ सकते। तब डॉ. साय ने कहा कि अगर वे नमक छोड़ देंगे तो क्या सब शराब छोड़ देंगे। आदिवासियों ने शराब छोडऩे का प्रयास करने का वचन दिया। तब से डॉ. साय नमक नहीं खाते। यह घटना 53 साल पहले 23 सितंबर 1970 की है।