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रायगढ़ के शहीद कर्नल विप्लव और उनके बेटे की शहादत का सम्मान आखिर कब…

रायगढ़। 40 साल से हर दिन बारी-बारी से नियमित सुंदरकांड पढ़ने, भगवान की भक्ति में लीन रहने वाले त्रिपाठी दंपति के लिए अब सब कुछ बदल गया। भगवान की जगह चिराग और अगरबत्ती उनके बेटे-बहू-नाती के फोटो के आगे जल रहे हैं। करीब 6 महीने लगे 73 वर्षीय माँ आशा त्रिपाठी को बेटे की शहादत को स्वीकार करने में, वह घर से बाहर नहीं निकल रहीं। अफसोस भरी हर आंखों का सामान कठिन होता है।

77 साल के सुभाष त्रिपाठी हर शाम को अपने पोते से मिलने जाते हैं। पोता उन्हें मिलता है ठीक चिल्ड्रेन पार्क के बगल में, चिल्ड्रेन पार्क में कई सारे बच्चे खेल रहे होते हैं इन्हीं में से एक आवाज 8 वर्षीय अबीर की होती है, शायद नहीं। वह बगल के श्मशान घाट में अपने दादा का इंतजार कर रहा होता है। उसकी आवाज सिर्फ दादा को ही सुनाई देती है। बड़े इत्मीनान से दादा वहां कुछ देर अकेले उसकी कब्र के ऊपर अपने हाथ फिरोते और उससे अपनी बात कहते। ललाट के पसीने और आंसू में कोई फर्क नहीं कर सके इसलिए वह धीमे-धीमे 3 किलोमीटर दूर उसके पास जाते और फिर लौट आते अगले दिन की तैयारी के लिये। दादा को एक बात का सुकून है कि जब वो आखिरी बार अबीर से मिले थे वह उन्हें जल्दी आने को कह रहा था। जब वह इस कब्र में गया तो उसे किसी को दिखाया नहीं गया।

अबीर त्रिपाठी, सबसे कम उम्र का शहीद 7 वर्षीय बच्चा। उसकी एकमात्र ख्वाहिश थी कि वह अपने पापा की तरह आर्मी ऑफिसर बनेगा। कम उम्र में वह वॉर रूम प्लानिंग का खेल अपने पिता शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी के साथ खेलता। बाप-बेटे को साथ देख दादा सुभाष त्रिपाठी से ज्यादा कौन खुश होता। वक्त का तकाजा देखिये कि तीनों के शव को कांधा इन्होंने ही दिया। वह कहते हैं कि हम चाहते थे कि अबीर आर्मी ऑफिसर बने पर जीवन के आठवें दशक में प्रवेश करने के कारण जब वह ऑफिसर बनता तो शायद हम जिंदा रहते। वह दादा का दुलारा था तो उसने मेरे जीते जी शहीद होने का दर्जा पा लिया।

अबीर त्रिपाठी ने अपनी माता अनुजा और पिता कर्नल विप्लव त्रिपाठी के साथ बीते साल 13 नवंबर को मणिपुर के चूड़ाचांदपुर में शहादत पाई। भारतीय सैन्य इतिहास में शायद यह पहली मर्तबा होगा कि एक सैन्य अधिकारी की परिवार समेत उग्रवादियों ने घात लगाकर हत्या कर दी। शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी, कमाडेंट, 46 वीं बटालियन, असम राइफल्स को गैलेंट्री अवार्ड (वीरता सम्मान) दिलाने के लिए सोशल मीडिया से लेकर ग्राउंड स्तर पर प्रयास शुरू हो चुके हैं। परिजन, आमजन राष्ट्रपति से लेकर मुख्यमंत्री और जनप्रतिनिधियों-अधिकारियों से पत्राचार कर रहे हैं। लोग सोशल मीडिया में खूब लिख रहे हैं। स्थानीय लोग छोटे-छोटे समूह बनाकर सेना से संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं।

इनकी शहादत को 10 माह बीत चुके हैं सेना खामोश है। राज्य सरकार मौन धरे हुए है। सिंघट पोस्ट पर जवानों को खुद उत्साहवर्धित कर और पत्नी अनुजा त्रिपाठी आर्मी वेलफेयर वर्किंग कमेटी की मुखिया मेडिकल इंस्पेक्शन रूम का उद्याटन कर जवानों को संबल देकर 12 नवंबर की शाम को बेस लौटना चाह रहे थे। उनको अगले दिन के लिए रोका जाता है। अगला दिन यानी 13 नवंबर पूर्वोत्तर भारत में उग्रवादियों का नो मूवमेंट डे होता है। यह बात भारतीय सेना भली भांति जानती है। लेकिन उस दिन क्यों कर्नल विप्लव त्रिपाठी को जाने का आदेश दिया जाता है। जबकि खुफिया तंत्रों ने उग्रवादियों द्वारा किसी बड़े हमले के लिए आगाह किया था। हालांकि यह सब सेना स्तर पर जांच का विषय है और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) इस मामले को देख रही है। सेना के सूत्र बताते हैं कि सेना स्तर पर कोर्ट ऑफ इंक्वायरी हुई और नतीजा क्या हुआ अज्ञात है।

अब असल मसला आता है शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी को भारतीय सैन्य वीरता सम्मान देने का तो वह इसके किस वर्ग में नहीं समाते, यह भी बड़ा सवाल है। कायदे से उनकी यूनिट असम राइफल उनके नाम को वीरता सम्मान के लिए भेजती पर अभी तक उन्होंने नहीं भेजा, शायद इसके पीछे सैन्य प्रशासन से जुड़े तकनीकी कारण हो सकते हैं। क्यूआरटी के शहीद हुए 4 जवान को भी अभी तक पहचान नहीं मिली। यह वही कर्नल विप्लव त्रिपाठी हैं जिन्होंने इससे पहले की अपनी पोस्टिंग मिजोरम में 46 असल राइफल्स के कमांडेंट रहते हुए म्यांमार बॉर्डर पर ड्रग्स माफियाओं और तस्करों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई की थी। मणिपुर बार्डर में भी इनका यही तेवर कायम रहा। तो कहीं सिस्टम की भेंट तो नहीं चढ़ गए कर्नल विप्लव त्रिपाठी। क्योंकि जब इनके नाम को वीरता सम्मान पदक के लिए भेजा जाएगा तो परिस्थितियों का भी जिक्र होगा जिसका संस्था कभी वर्णन नहीं करना चाहती। लेकिन एक सैन्य अधिकारी अपने परिवार समेत शहीद हुआ है। उसने अपने अपने राइफल की पूरी कारबाइन खाली कर दी और सर्विस रिवाल्वर की सारी गोली दुश्मनों पर चलाई फिर भी वह नहीं बच सका और न ही अपने जवानों और परिवार को बचा सका। एक सोची समझी रणनीति का शिकार उसके साथ 4 जवान और 2 परिजन हुए जिसमें उसका 7 साल का बेटा और पत्नी भी शामिल थीं। शहादत की इससे बड़ी कोई और परिभाषा है तो कोई बताए।

शहीद की मां आशा त्रिपाठी रिटायर्ट शासकीय कर्मचारी हैं 6 महीने तक बदहवाश रहने वाली माता को संबल मिला तो उन 4 शहीदों को परिजनों से मिलकर जिनकी उन्होंने यथासंभव मदद की। अब देश के सैन्य अकादमियों में जाकर बेटे-बहू-नाती की स्मृति में कुछ करने की योजना बनाई है। क्योंकि पैसा उनके लिए मायने नहीं रखा मायने हैं तो बेटा-बहू और नाती की स्मृति को बनाए रखना। छोटा भाई कर्नल अनय त्रिपाठी सेना के कायदे कानून के ऊपर कुछ नहीं सोचता बड़े भाई विप्लव की यही सीख उसने गांठ बांधी है। दोनों भाइयों की मिसाल पूरा रायगढ़ देता है जिनके लिए वे बुलु और बुबलु रहे कोई अधिकारी नहीं। रायगढ़ कभी जान ही नहीं पाया कि विप्लव कितने बड़े अधिकारी थे क्योंकि वह अपने शहर में बुलु रहते हर किसी से एकदम शालीनता से मिलते। पर जब वह गए तो शहर के घरों के चूल्हे बमुश्किल जलें हो। पूरा रायगढ़ उनके आखिरी दर्शन को आया था। बड़े भाई के परिवार की अनुपस्थिति ने छोटे भाई के परिवार को एकाएक व्यस्क बना दिया। यहां तक कि 7 वर्षीय ताशी अपना बचपन भूल चुकी है।

स्थानीय युवा लक्ष्मीकांत दुबे कहते हैं : “रायगढ़ पिछड़ा क्षेत्र है यहां आर्मी कल्चर है नहीं। पंडालों में शहीद की फोटो, कवि सम्मेलन और क्रिकेट टूर्नामेंट से लोग यदा-कदा याद कर रहे हैं। पर जनप्रतिनधियों ने तो एक निर्जन मैदान को शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी का नाम देकर अपनी पीठ थपथपा ली है और सूबे के मुखिया भी खुश हैं। जिन्होंने सिर्फ एक ट्वीट कर अपनी संवेदना जताई। हां, लखीमपुर में सड़क हादसे में मरे लोगों को 50-50 लाख मुआवजा बांट देते हैं। पर जब उनके राज्य के शहीद की बात आती है तो चुप हो जाते हैं। मैने शहीद विप्लव के घर पास कोतवाली परिसर में उनकी प्रतिमा स्थापित करने के लिए पत्र व्यवहार भी किया था लेकिन उसका जवाब अब तक नहीं आया। “

शहादत के समय कई नेता-अधिकारी आए। उन्हीं में से एक ने बताया कि मुख्यमंत्री शहीद परिवार को रायपुर में श्रद्धांजलि देना चाहते थे। घटना के तीसरे दिन 15 नवंबर को लेकर वायुसेना का विमान सीधे रायगढ़ आ गया। इससे शायद उन्हें आघात लगा हो और उन्होंने इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया होगा। वरना मुख्यमंत्री का इनके पास आना तो बनता था। हादसा 13 नवंबर को हुआ,शव क्षत-विक्षत थे 14 को सेना की मेडिकल टीम ने पुर्नसंचना कर इन्हें दिया पर मणिपुर के मुख्यमंत्री के इंतजार में 14 की जगह 15 नवंबर को विमान रायगढ़ पहुंचा। इधर देर होने के कारण परिजन व्याकुल थे और समय पर अंतिम संस्कार करना जरूरी था। अगर विमान रायपुर होते आता तो अंतिम संस्कार में एक दिन और लग सकता था। सनद रहें बारूद का घाव का शरीर को तेजी से खराब करता है। तीन महीने पहले स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव रायगढ़ आए तो शहीद को नमन करने गए। परिजनों से बात करने के बाद उन्होंने कहा कि सैन्य संस्थानों में दिये जाने वाले पुरस्कार के नाम को शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी के नाम करने के लिए वह प्रयास करेंगे। पर उनके प्रयास अभी तक नहीं दिख रहे।