नंदेली की वह शाम खामोश सी उदास सी थी। शहीद नंदकुमार पटेल का घर, दालान, आंगन सब कुछ पहले जैसा ही था लेकिन एक वो नहीं थे जिनकी मौजूदगी, पूरे घर को अपनी खुशियों की उजास से रोशन कर जाती थी। एक वह भी नहीं था जिसके होने से, एक युवा सूरज के सदा घर में होने का अहसास दमकता रहता था। माहौल को सहज बनाने के सबब से मैंने हल्की-फु ल्की बातों से शुरूआत की। जैसे पटेल का मनपसंद खाना, प्रिय पहनावा और उनकी अन्य रूचियां आदि। फि र मैंने श्रीमती नीलावती से पटेल साहब के परिवार में उनके आगमन का प्रसंग उठाया। मेरा सहज प्रश्न जिसका संभावित उत्तर भी मुझे मालूम था- क्या नंदकुमार विवाह पूर्व आपको देखने आये थे? लेकिन इसका जवाब मुझे विस्मित कर गया। श्रीमती नीलावती ने बताया- पटेलजी के पिता और मेरे पिता गहरे मित्र थे। हमेशा की तरह वे हमारे घर आये। मैं उस समय छ: मास की थी और पटेल साहब सात साल के। उन्होंने मुझे देखा और मेरे पिता से कहा, आज ले ये नोनी हर हमर बहुरिया और मोर नंदकुमार तुंहर दामाद। फि र चौदह साल बात गौना हुआ और पूरे विधि विधान से वे नंदकुमार की जीवनसंगिनी बन नंदेली के घर-आंगन में आ गईं। समय का पाखी उड़ता गया। इस बीच जीवन की टहनियों में वात्सल्य-पुष्प खिलते गये, जिनके उन्होंने दिनेश, सरोजनी, शशिकला, उमेश नाम रखे।
एक जीवनसाथी के रूप में नंदकुमार का स्वभाव, मिजाज और उनके पारिवारिक सामाजिक रिश्ते जैसे प्रश्नों के उत्तरों में श्रीमती नीलावती काफ ी सहज थीं। उन्होंने कहा कि वे बहुत स्नेह भरे थे, हमेशा मां और बाबूजी का विशेष ध्यान रखते। घर की जिम्मेदारी उनके कंधों पर भी थी। एक समर्पित और योग्य बेटे के रूप में वे अपने पिता के बेहद प्रिय थे। शुरूआती दौर में खेती-किसानी और ठेकेदारी व्यवसाय के बाद जब वे सरपंच बने तो उनकी व्यस्तता बढ़ गई थी। वास्तव में अब पूरा गांव उनका अपना परिवार था। घर-परिवार और सरपंचीय कार्यभार के साथ उनका बहुत अच्छा ताल-मेल था। हमेशा हंसते मुस्कुराते रहते। इसी बीच मैंने एक सवाल किया-क्या पटेल साहब को गुस्सा आता था? हल्की सी मुस्कान के साथ उन्होंने- बिल्कुल! वैसे वे बहुत शांत स्वभाव के थे लेकिन जब कभी उनकी रखी चीजें अपने स्थान पर नहीं मिलतीं, या उन्हें बहुत ढूंढना पड़ता तब तो बहुत गुस्सा हो हो जाते। सारा घर सहमा सा रहता। वे फि र अपने इसी गुस्से को साथ लिये अपने परम मित्र ठाकुर बरन सिंह के घर चले जाते। घंटों वहीं रहते। फि र जब लौटते तो एकदम नार्मल! जैसे कुछ हुआ ही नहीं थ। दोनों में गहरी दोस्ती थी।
शहीद नंदकुमार पटेल अपनी राजनीतिक जीवनयात्रा के अगले दौर में विधायक बने और मंत्री पद से नवाजे गये। इस बदले दौर के घटनाक्रम और परिस्थितियों को जानने की मेरी उत्सुकता ने श्रीमती नीलावती से प्रश्न किया, पटेल साहब की इन वक्तों की घनघोर व्यस्तता के दिनों में आपकी पारिवारिक जिंदगी में क्या बदलाव आये? श्रीमती नीलावती के उत्तर से हम चकित-हर्षित और गर्वित भी थे। उन्होंने बताया- मेरा भोपाल या रायपुर रहना बहुत ज्यादा नहीं हुआ। दरअसल पटेल साहब अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद अपने बाबूजी एवं माता का बहुत ध्यान रखते। उन्हें कभी भी किसी किस्म की तकलीफ न हो यह खयाल हमेशा उनके भीतर बना रहता। इसलिए इसका दायित्व मुझे सौंपा गया। मैं नंदेली में रही और मेरे वहां रहने से पटेल साहब उनकी तरफ से निश्चिंत रहते। मैं उनसे यही कहती कि आप प्रदेश के गृहमंत्री हैं और मैं नंदेली के इस घर की गृहमंत्री हूँ। घर में मेरे भाई विरंचि और रूचि दोनों साथ रहे। दोनों मां-बाबूजी का बहुत ध्यान रखते। जरूरत पडऩे पर वे इन्हीं दोनों को पुकारते थे। वे कभी बीमार भी होते तो मैं अच्छे से उनका इलाज करा लेती। घर का टेंशन कभी भोपाल तक नहीं पहुंच पाता।
आगे की बात करते हुए श्रीमती नीलावती का कंठ हमें गौरव से भरा-भरा महसूस हुआ- जब भी पटेल साहब भोपाल या रायपुर अथवा किसी बड़े दौरे से नंदेली लौटते तो सबसे पहले मां-बाबूजी से मिलते। बैठते और बातें करते। सबकी कुशलक्षेम पूछते। इसी तरह भोपाल-रायपुर जाते वक्त भी वे मां-बाबूजी के पास जरूर बैठते। चरण छूकर प्रणाम करके जाते। मैं हमेशा यह मानती रही हूं कि इन दोनों के आशीर्वाद से पटेल साहब का माथा हमेशा ऊंचा रहा और दमकता रहा। वे शुरू से ही ऐसे थे। सबसे मीठा व्यवहार करते। किसी समस्या को लेकर गांव के लोगों की गुहार पर वे आधा कौर छोडक़र पहुंच जाते और समाधान करते।
मेरे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्रीमती नीलावती का जवाब वात्सल्य की दूधिया महक से भरा हुआ था- पटेल साहब की जिंदगी की सबसे खुशी का अवसर था- प्रथम पुत्र रत्पन- बेटे दिनेश का जन्म।
पटेल साहब की व्यस्ततम जिंदगी को देखते हुए मैं दिनेश के राजनीति में जाने के पक्ष में नहीं थी लेकिन दिनेश और राजनीति ने एक-दूसरे को चुन लिया था। दिनेश काफ ी सफ ल भी रहे। बाद में तो मैंने पटेल साहब को दिनेश से सलाह लेते भी देखा सुना। वे छोटे बेटे उमेश की आईटी इंजीनियरिंग पढ़ाई के प्रति विशेष ध्यान रखते और अब मेरे बेहद संवेदित प्रश्न की बारी थी- नंदकुमार की शहादत की खबर आपको कब और कैसे मिली? सन्नाटा बिखरना स्वाभाविक था। अपने को सम्हालते हुए श्रीमती नीलावती ने कहा- सत्यनारायण की पूजा हुई थी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर पटेल साहब पार्टी की परिवर्तन यात्रा कार्यक्रम में बहुत व्यस्त रहते थे। घर की टीवी में बस्तर के नेता महेन्द्र कर्मा की मौत की खबर आई। बाद में मुझे बताया गया कि टीवी में खराबी आ गई है और टीवी बंद है। यह भी कहा कि रायपुर चलना है। सब के साथ हम लोग रायपुर आ गये। सुबह होते ही मैंने उमेश बेटे से कहा कि भाई (दिनेश) से मिलना है। मुझे बहलाया गया कि वह बिजी हैं, जल्दी मुलाकात होगी। मैंने देखा बहुत भीड़ थी। मुझे कहा गया कि राजीव गांधी आ रहे हैं इसलिये भीड़ है। मैंने अपने फु फेरे भाई आरसी पटेल से दिनेश के बारे में पुन: पूछा।
वे बताये कि थाने में बैठे हैं फिर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आये, तब अनहोनी और आशंका से सिहरती मैं समझ गई कि पटेल साहब के साथ कुछ अनहोनी हुई हैै। गहरे अंधेरे को मैंने अपनी ओर आते देखा और बेसुध हो गई। मेरे जीवन की कैसी विडम्बना थी कि पिता और पुत्र दोनों एक साथ परिवर्तन यात्रा में गये थे और फि र दोनों जीवन की अंतिम यात्रा में भी एक साथ चले गये। बाद में श्रीमती नीलावती ने बताया कि दिनेश को इस यात्रा मेें जाने के लिये मना किया था। 19 मई को मां को बतायेे बिना पहली बार वह बेटा ऐसा गया कि फिर कभी लौट कर नहीं आया।
रायगढ़ में शहीद नंदकुमार पटेल विश्वविद्यालय की स्थापना से श्रीमती नीलावती को बेहद संतोष एवं प्रसन्नता है। उनके अपने शब्दों में इस विश्वविद्यालय के खुलने से मैं बहुत प्रसन्न हूं। हमारे क्षेत्र के हजारों बच्चों को लाभ होगा। उन्हें दूर भटकना नहीं पड़ेगा। नये विषयों की पढ़ाई भी संभव हो सकेगी। इस अवसर पर एक विव्हल मां का तरल वात्सल्य भी छलका, मैं चाहती हूं कि मेरे बेटे दिनेश की शहादत की स्मृति में सारे विषयों के एक वृहत कालेज की स्थापना हो। हमारे देश में रिश्तों की बनावट और बुनावट में ढेर सारे रिश्तों के नाम हैं। हमारे मनीषी ऋषियों ने जब परमात्मा को तमाम रिश्तों में से किसी एक रिश्ते का देना चाहा तो मार्कण्डेय ऋषि ने चुना मां को। उनके भाव विभोर शब्द थे- या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै: नमस्तस्यै: नमो नम:। मांं नीलावती देवी, मार्कण्डेय ऋ षि की इसी पावन प्रार्थना का प्रतिनिधित्व करती हैं और आज के कवि की भी अभ्यर्थना है :- इस धरती पर जितने बच्चे हैं, उन्हें मालूम हो कि जब वे मां कहते हैं तो वास्तव में ईश्वर का नाम लेते हैं।
प्रो. अम्बिका वर्मा
