रायगढ़। लैलूंगा में हुए धान घोटाले में कार्रवाई पूरी नहीं की गई। जांच रिपोर्ट को भी इस तरह से बनाया गया कि केवल समिति प्रबंधक और कर्मचारी फंसें। तहसील और अपेक्स बैंक के जिम्मेदारों को छूट दी गई। अब अपेक्स बैंक के एमडी ने जांच करने का आदेश दिया है लेकिन एफआईआर में केवल समिति प्रबंधक और सहयोगियों के नाम हैं।
राजपुर, लैलूंगा और बीरसिंघा में रकबा बढ़ाकर धान बेचने का मामला एक बार फिर गर्म हो गया है। जांच रिपोर्ट पर भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि इसमें पूरी जिम्मेदारी केवल समिति पर ही डाली गई है। तीनों केंद्रों में कई किसानों के रकबे में वृद्धि, एकाउंट नंबर चेंज, आधार नंबर भी बदलने जैसी गड़बड़ी की गई। इसके बाद अपेक्स बैंक पत्थलगांव ब्रांच से बिचौलियों को भुगतान किया गया। किसान की पहचान पुख्ता होने पर ही भुगतान किया जाता है लेकिन ब्रांच मैनेजर रामकुमार यादव और लेखाधिकारी अरुण कुमार मिश्रा ने बिचौलियों को ही धान की राशि दे दी। धान घोटाले के गिरोह में ये दोनों भी शामिल थे। इसकी पुष्टि उस जांच रिपोर्ट में की गई है जो कलेक्टर ने एमडी अपेक्स बैंक को भेजी है। इसमें रामकुमार यादव की कारस्तानी को खुलकर लिखा गया है।
इसी तरह लेखाधिकारी अरुण मिश्रा ने भी यादव का पूरा साथ दिया है। एमडी अपेक्स बैंक ने मिश्रा को भी नोटिस दिया है। दरअसल राजपुर और लैलूंगा में फर्जी रकबे पर धान बेचने के बाद भुगतान करने के लिए बैंकिंग नियमों का उल्लंघन किया गया है। ब्रांच से चलन से बाहर हो चुके पुराने चैकबुक जारी किए गए और इसके लिए कोई चार्ज भी नहीं लिया गया। लेखाधिकारी को दो लाख तक की नकद राशि आहरण स्वीकृत करने का अधिकार है लेकिन छह लाख तक की राशि स्वीकृत कर ली गई। दिलचस्प बात यह है कि पुराने आउटडेटेड चैकबुक उन्हीं किसानों को दिए गए जिनके रकबे में फर्जी बढ़ोतरी हुई थी ।
विभागीय जांच का भी आदेश
लेखाधिकारी अरुण मिश्रा के विरुद्ध विभागीय जांच का आदेश किया गया है। इधर ब्रांच मैनेजर के खिलाफ भी जांच की जा रही है। अपेक्स बैंक ने अरुण मिश्रा की पोस्टिंग लैलूंगा ब्रांच में कर दी है। दोनों ने मिलकर लैलूंगा के बिचौलियों को पूरी मदद पहुंचाई। फर्जी रकबे पर तुरंत भुगतान सुनिश्चित किया। लिमिट से अधिक नकद राशि भी दी गई।
पुलिस को भेजी रिपोर्ट में नाम क्यों नहीं
जांच करने वालों ने बड़ी सफाई से पूरा ठीकरा समिति प्रबंधकों के सिर फोड़ दिया। उनके साथ इस खेल में कई बिचौलिए, तहसील के कर्मचारी और अपेक्स बैंक के दो अधिकारी भी शामिल थे। एफआईआर अनुशंसा से इनका नाम हटा दिया गया। लैलूंगा के सबसे बड़े बिचौलिए को भी बचा लिया गया। जबकि एफआईआर में उनका नाम होना था।
