रायगढ़, 14 जनवरी। एसईसीएल की दुर्गापुर खदान शुरू करने की राह में फिर से बाधा आ गई है। आठ साल से कंपनी इस खदान को शुरू करना चाह रही है लेकिन मुआवजे को लेकर सहमति नहीं बन रही है। बताया जा रहा है कि एक गांव का गाइडलाइन रेट अधिक है इसलिए बाकी गांव विरोध कर रहे हैं।
कोयला मंत्रालय ने करीब 12 साल पहले एसईसीएल को धरमजयगढ़ की दुर्गापुर माइंस आवंटित की थी। इसके लिए तकरीबन 2800 एकड़ जमीन अधिग्रहित की जानी है। कोल बेरिंग एक्ट के तहत भूअर्जन होगा जिसमें मुआवजा नए भू-अर्जन अधिनियम के तहत मिलेगा। चार गुना मुआवजे के अलावा सीबी एक्ट के तहत दो एकड़ में एक नौकरी का भी प्रावधान है। तराईमार, दुर्गापुर, शाहपुर, धरमजयगढ़ और बायसी की जमीनें अधिग्रहित की जानी हैं। सबसे बड़ी दिक्कत मुआवजा दर को लेकर है। एसईसीएल ने आठ साल पहले ही अधिग्रहण की औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं। अब ग्रामीणों की सहमति पर मामला अटका है। सैकड़ों ग्रामीणों ने मुआवजे की दर को लेकर असहमति जताई है।
धरमजयगढ़ एसडीएम डिगेश पटेल ने कई सालों से लंबित मामले को सुलझाने के लिए प्रयास किए हैं। शुक्रवार को बैठक भी रखी गई थी। ग्रामीणों की आपत्ति मुआवजे की दर को लेकर है। गाइडलाइन रेट को आधार मानकर ही चार गुना मुआवजा दिया जाना है, लेकिन तराईमार में जमीन का मूल्य दूसरे गांवों की तुलना में डेढ़ से दो गुना है। ऐसे में तराईमार के प्रभावितों को बहुत राशि मिलेगी लेकिन बाकी गांवों में कम राशि दी जाएगी। विरोध करने वाले ग्रामीण एक समान मुआवजे की मांग पर अड़े हुए हैं।
कई बार हुआ था टेंडर जारी
दुर्गापुर ओपन कास्ट माइंस के डेवलपमेंट के लिए एसईसीएल ने कई बार टेंडर जारी किया है। करीब तीन हजार करोड़ की लागत से यह कोल माइंस डेवलप की जानी है। एसईसीएल खुद खनन करने के बजाय एमडीओ मोड में इसे संचालित करेगा, लेकिन भूअर्जन में बाधाओं के कारण समय सीमा खत्म हो जाती है। सूत्रों के मुताबिक क्षेत्र के आदिवासी भूमि स्वामी सहमति देने को तैयार हैं लेकिन दस प्रश लोगों की आपत्ति के कारण मामला अटका है।
क्या कहते हैं डिगेश
कई सालों से लंबित मामले को सुलझाने का प्रयास किया जा रहा है। अभी तक ग्रामीण सहमत नहीं हो सके हैं। मुआवजा दर को लेकर असहमति है।
– डिगेश पटेल, एसडीएम धरमजयगढ़
