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जिसको दुनिया वाले त्याग देते है उसको स्वयं भगवान की शरण में जाना चाहिए : अतुल कृष्ण भारद्वाज

अंतिम दिवस हजारों श्रोताओं ने लिया श्रीमद्भागवत कथा का आनंद

खरसिया। धर्म नगरी खरसिया की पावन धरा पर पितृमोक्षार्थ सात दिवशीय संगीतमय श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह का आयोजन गर्ग परिवार (नवापारा वाले) के द्वारा दिनांक 28 अगस्त से 3 सितम्बर तक स्थानीय कन्या विवाह भवन में करवाया जा रहा है कथा के अंतिम दिवस हजारों श्रोताओं ने श्रीमद्भागवत कथा का आनंद लिया। कथा व्यास पूज्य अतुल कृष्ण भारद्वाज ने श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दौरान सप्तम दिन सभी श्रद्धालुओं के समक्ष भामासुर के विषय में कथा प्रारंभ करते हुए बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने भामासुर राक्षस द्वारा अपहृत की गई 16100 कन्याओं को युद्ध करके छुड़ाया। समाज द्वारा उनका तिरस्कार ना हो, इसलिए स्वयं भगवान उनका अपने साथ विवाह किया भगवान श्री कृष्ण से बड़ा दयालु और कौन होगा जिसको दुनिया वाले त्याग देते हैं उसको स्वयं भगवान की शरण में जाना चाहिए। भगवान स्वयं उसका वर्णन कर लेते हैं।

आगे कथा व्यास में कहा सुदामा ब्राह्मण परंतु दरिद्र नहीं। जीवन में गरीबी होना अलग बात है दरिद्र होना अलग बात है कोई धनवान भी दरिद्र हो सकता है ब्राह्मण दान लेने का अधिकारी तो है परंतु भीख मांगने का नहीं। गरीबी होने पर सुदामा जी भीख नहीं मांगते, पूजा पाठ कर कथा में जो आ जाए उसी को भगवत कृपा मानकर स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन प्रसन्न रहते हैं। सुदामा संतोषी है वह भगवान श्री कृष्ण से मिलने गए और श्रीकृष्ण ने उन्हें सिहासन पर बैठाया। चरणों मे बैठ गए भगवान और खूब रोए। ये स्वागत ब्राम्हण का है, किसी दरिद्र का नही।

समाज को सुदामा से प्रेरणा लेनी चाहिए कि गरीबी हो या अमीरी भगवान का प्रसाद समझकर जीवन जीना चाहिए। कथा व्यास ने कहा कि दत्तात्रेय के 24 गुरु थे उनका वर्णन करके बहुत ही सरल ढंग से समझाया कि छोटे छोटे जीव का सम्मान करके उसमें परमात्मा का दर्शन करें प्रत्येक पशु पक्षी भी जीवन में मार्गदर्शक हो सकते हैं उन से सीख लेनी चाहिए। अंत मे परीक्षित के मोक्ष का वर्णन बड़े ही मार्मिक ढंग से किया मृत्यु उसे कहते हैं जब शरीर शांत हो जाए। आज कथा के अंतिम दिन सभी श्रोताओं ने कथा का बहुत ही आनंद लिया इन सात दिनों में क्षेत्रवासी भक्तिमय वातावरण से सराबोर होते रहे।