दो फर्मों की तरह पहले भी कई उद्योग संचालकों ने सरकार को पहुंचाया नुकसान, जानबूझकर नहीं होती जांच, मोटी कमीशन तय करके दिया जाता है गेट पास
रायगढ़, 26 फरवरी। सेस और सब्सिडी के खेल में एक-दो नहीं बल्कि ज्यादातर उद्योग शामिल हैं। लघु उद्योगों के लिए यह ट्रिक अपनाई जाती है। एक-दो लाख से भी बचा लिया जाता है और लाखों की सब्सिडी भी हड़प ली जाती है। जिन तीन विभागों के बीच प्रक्रिया चलती है, वहीं से ढिलाई होती है। मिलीभगत करके ही पहले लागत कम दिााई जाती है, उसके बाद तीन गुना तक लागत बढ़ा दी जाती है। सालों से चल रहे इस खेल में कई मोहरे हैं। उद्योग स्थापना के पूर्व चुकाए जाने वाले सेस और सरकार से मिलने वाली सब्सिडी का खेल उजागर होते ही विभागों में हडक़ंप मचा हुआ है। दरअसल अभी केवल महालक्ष्मी राइस मिल और हनुमान फूड्स का ही मामला सामने आया है। दोनों ने श्रम विभाग से लाइसेंस लेने के पूर्व लागत कम बताई क्योंकि वहां उपकर देना था।
प्रोजेक्ट कॉस्ट का एक प्रश उपकर के रूप में देना होता है। इसी तरह जब डीआईसी में पंजीयन कराया गया तो लागत तीन गुना बढ़ गई। उद्योग विभाग में वैल्युअर सर्टिफिकेट में जितनी लागत होती है, उसका 35 प्रश या 38.5 प्रश राशि सब्सिडी मिलती है। महालक्ष्मी राइस मिल ग्राम अमुर्रा की संचालक माया देवी अग्रवाल और आकाश अग्रवाल ने लागत पहले 53.20 लाख रुपए बताई और बाद में 1,30,68,000 रुपए बताई। इस तरह दो जगहों की लागत में ढाई गुना का फर्क है। इस खेल में केवल यही दो फर्म नहीं हैं बल्कि कई कारोबारियों ने इस तरह धोखाधड़ी की है। कई सालों से ऐसे ही कई फर्जीवाड़े करने की वजह से उद्योगों से मिलने वाला उपकर कम होता गया जबकि सब्सिडी बढ़ती गई।
किसी को पता नहीं चलेगा, हम देख लेंगे
दोनों फर्मों के संचालकों ने यह धोखा जानबूझकर किया है। औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग ने कभी उद्योग के आवेदन पर क्रॉस चेक ही नहीं किया। दरअसल, यह विभाग सालों से निरीक्षण के नाम पर उद्योगों का संरक्षण करते आ रहा है। इसी वजह से जिसने जितना सेस दिया, स्वीकार कर लिया गया। दस्तावेजों के हिसाब से उद्योग की लागत का आकलन ही नहीं किया। इसी तरह उद्योग विभाग भी रेवड़ी की तरह सब्सिडी बांटता रहा। उद्योगों से बिना सांठगांठ के इतनी बड़ी गड़बड़ी नहीं की जा सकती।
