इतने महीनों में केवल एक ही ऑर्डर, प्रति शर्ट 15 रुपए और स्कर्ट के लिए 17 रुपए की दर पर कर रहे काम
रायगढ़। महिला समूहों को सक्षम बनाने के लिए जोर-शोर से शुरू किया गया टेक्सटाइल मिल अंतिम सांसें गिन रहा है। एक साजिश के तहत इसे शुरू किया गया और अब उसी तरह खत्म भी किया जा रहा है। इतने महीनों में केवल एक ही ऑर्डर मिला, उसे पूरा करने में दो समूहों को मुश्किल हो रही है।
बहुत सामान्य सी बात है कि जहां कपड़े की फैक्ट्रियां होती हैं वहीं टेक्सटाइल मिल शुरू होती हैं। रायगढ़ जिला इस मामले में अनोखा है। कपास का उत्पादन शून्य है, कपड़े की कोई फैक्ट्री नहीं है लेकिन लाइवलीहुड कॉलेज में टेक्सटाइल मिल शुरू कराई गई। नवचेतना और फैशन क्वीन महिला समूहों को टेक्सटाइल मिल से यह कहकर जोड़ा गया कि जब तक उन्हें पर्याप्त ऑर्डर न मिलें, तब तक प्रशासन ही देखरेख करेगा। प्रति सदस्य 20 हजार रुपए प्रतिमाह दिए जाने का भी वादा किया गया था जो अब तक पूरा नहीं किया।
हैदराबाद से 30 लाख रुपए में 60 इलेक्ट्रॉनिक सिलाई मशीनें मंगाई गईं हैं। दोनों महिला समूहों के करीब 20 सदस्य प्रारंभ में जुड़े थे। वर्तमान में यहां 12-13 महिलाएं ही बची हुई हैं। गढ़उमरिया स्थित लाइवलीहुड कॉलेज में ही मिल शुरू की गई थी। महिलाओं को वहां तक आने-जाने के लिए कॉलेज की बस पर ही निर्भर रहना पड़ता है। कॉलेज की क्लास के हिसाब से ही वे काम करते हैं। इसलिए एक ऑर्डर को पूरा नहीं किया जा सका है।
महिला समूहों ने बड़ी मुश्किल से रजिस्ट्रेशन करवाया। इसके बाद हथकरघा विभाग से दोनों समूहों को चार हजार गणवेश सिलाई का काम मिला। इसके अलावा एक भी काम नहीं मिला। गणवेश का काम भी अंतिम चरण में है। इसके बाद कोई ऑर्डर नहीं है। अब महिलाओं ने भी इससे दूरी बना ली है। महज छह महीने में ही टेक्सटाईल मिल फेल हो रहा है।
15 रुपए में सिलते हैं एक शर्ट
जिस रेट पर हथकरघा विभाग ने काम दिया है, वह भी बहुत कम है। एक शर्ट 15 रुपए और स्कर्ट 17 रुपए में सिलकर देना है। सिलाई के लिए कच्चा माल जैसे धागा, बटन आदि भी महिला समूहों को ही क्रय करना है। इसके लिए प्रारंभ में 6 हजार रुपए मिले थे। इसके बाद कोई मदद नहीं मिली। अगर ऑर्डर पूरा कर लिया तो करीब 1.28 लाख रुपए मिलेंगे। छह महीने में मिल से सिर्फ इतनी आमदनी होने से महिला समूह निराश हैं। इसके बाद कोई ऑर्डर ही नहीं हैं।
हतोत्साहित कर रहे हैं सभी
लाइवलीहुड कॉलेज में टेक्सटाइल मिल चलाने में महिलाओं को प्रोत्साहित करने के बजाय हतोत्साहित किया जा रहा है। प्रभारी भी नए सदस्यों को जोडक़र काम तेज कराने के बजाय इसे फेल करने में लगे हैं। महिलाओं का कहना है कि कई लोग चाहते हैं मिल बंद हो जाए। महिला समूहों की जीविका बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा ऑर्डर मिलने जरूरी हैं। समूह में सदस्यों की संख्या बढ़ाकर मिल को रोज कम से कम छह घंटे चलाना भी होगा। ऐसे कोई भी प्रयास नहीं हो रहे हैं।
