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Sarangarh News : एक ऐसा अनोखा मंदिर जहां सभी भक्त मिलकर जलाते हैं सिर्फ एक दिव्य कलश

सारंगढ़। जिला मुख्यालय के 15 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम सरसीवा है और क्षेत्र का प्रमुख व्यापारिक केंद्र है जहां 15 वीं शताब्दी की आदि शक्ति मां महामाया दुर्गा की भव्य एवं विशाल प्रस्तर प्रतिमा स्थापित है मां महामाया दुर्गा इस आंचल की सर्वशक्तिमान महिमामयी एवं एकमात्र उपास्य देवी है किवदंती है कि यहां पर हृदय से जो भी मांगता है उसकी मुरादें पूरी होती है यह अन्य देवीमंदिरों की तरह सैकड़ों ज्योति कलश नहीं जलाए जाते बल्कि श्रद्धालु भक्तों द्वारा दिए गए सामानों को एक साथ मिलाकर एक ही ज्योति कलश जलाई जाती है।

यहां माता के दर्शन के लिये श्रद्धालु भक्तों की भारी भीड़ नवरात्रि एवं चैत्र नवरात्रि और वार्ड नवरात्रि के साथ प्रतिदिन भक्तगण यहां पहुंचकर पूजा अर्चना करते हैं । विशेषकर नवरात्रि का पर्व बड़े धूमधाम से यहां मनाया जाता है और भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। मां महामाया दुर्गा के सरसींवा में आगमन एवं स्थापना के संबंध में जनश्रुति के आधार पर कथा इस प्रकार बताया जाता है कि संबलपुर वर्तमान में उड़ीसा प्रांत के महाराजा चौहान शिकार खेलने के लिए पूरे लाव लश्कर के साथ प्रतिवर्ष क्षेत्र में फैले सघन विशाल एवं बियाबान जंगल की ओर आते थे।

एक बार महाराजा चौहान शिकार खेलते के लिए आए थे और एक शेर का पीछा करते हुए भटगांव एवं बिलाईगढ़ के मध्य सघन एवं बियाबान जंगल में जा पहुंचे तो उन्होंने महामाया दुर्गा है जो अपनी इच्छा से विभिन्न देखा कि शेर तो अदृश्य हो गया था लेकिन यहां से कुछ दूरी सुंदर स्त्रियां झूला झूल रही थी महाराजा चौहान यह देख कर आश्चर्य चकित हो गये कि यह महिलाएं साधारण मानव ना होकर देवियां हैं महाराजा चौहान ने उन्हें देवियों से प्रार्थना की कि वे उनके साथ राजमहल में चलकर उन्हें नित्य सेवा करने का अवसर प्रदान करें तब वहां वेशों में वन संचरण करती रहती है अतः हम लोग तुम्हारे साथ नहीं जाएंगी।

महाराजा चौहान ने बहुतेरी अनुनय विनय की तब मां महामाया दुर्गा इस शर्त के साथ जाने के लिए तैयार हो हुई कि वे अपने मनपसंद जगहों पर रुक जाएंगी , तब मैं आगे चलने के लिए बाध्य न किया जाए । महाराजा आकाशवाणी हुई है राजन हम का रथ जब वर्तमान सरसीवा कोई साधारण स्त्रियां ना होकर साक्षात श्री ग्राम में पहुंचा उस समय यहां कोई गांव नहीं था। यह स्थान उस समय टीले के रूप में तब यही वर्तमान सरसीवा ग्राम में अष्टभुजी श्री मां महामाया रुक गई महाराजा चौहान को अपनी पूजा पाठ तथा मंदिर बनाने के लिए कहा।

मां महामाया की आज्ञा शिरोधार्य कर महाराजा चौहान मंदिर का निर्माण कराया तथा इसकी पूजा पाठ के लिए ब्राह्मण की खोज की उस समय मां के वर्तमान पुजारी पंडित ईश्वरी प्रसाद दुबे के पूर्वज महानदी के किनारे स्थित के जैतपुर नामक गांव में रहते थे महाराजा चौहान ने इन्हें बुलाकर मां महामाया दुर्गा की पूजा पाठ करने का आग्रह किया, तब से लेकर आज तक उनके पीढ़ी पूजा पाठ करते आ रहे हैं। प्रस्तर प्रतिमा के रूप में प्रतिष्ठित मां महामाया देवी का मंदिर किस क्षेत्र के लिए पूजा अर्चना तथा दर्शन का प्रमुख केंद्र के साथ महामाया मंदिर के नाम सुविख्यात यह मंदिर जिला मुख्यालय के 15 किलोमीटर की दूरी ग्राम सरसीवा के ठीक मध्य स्थित है।

मां महामाया मंदिर में वर्ष में मंदिर में वर्ष में दो बार क्वार नवरात्र एवं चैत्र नवरात्र में ज्योति कलश प्रज्वलित की जाती यह अन्य देवी मंदिरों की तरह सैकड़ों ज्योति कलश नहीं जलाये जाते बल्कि श्रद्धालुओं भक्तों द्वारा दिए गए सामानों को एक साथ मिलाकर एक ही ज्योति कलश जलाई जाती है नवरात्रि पर्व पर मां महामाया दुर्गा का विशेष रूप से श्रृंगार किया जाता है ।