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Home | Raigarh News : स्व. नंदकुमार पटेल की पुण्यतिथि पर विशेष : अशेष आशीष का विस्तृत आकाश : पिता स्व. महेन्द्र सिंह पटेल, वात्सल्य की पुण्यमयी गंगा नीलावती, पिता के वात्सल्य जैसे अग्रज राधाचरण पटेल, बाबूजी के संस्कारों से पल्लवित-पुष्पित हैं बेटियां

Raigarh News : स्व. नंदकुमार पटेल की पुण्यतिथि पर विशेष : अशेष आशीष का विस्तृत आकाश : पिता स्व. महेन्द्र सिंह पटेल, वात्सल्य की पुण्यमयी गंगा नीलावती, पिता के वात्सल्य जैसे अग्रज राधाचरण पटेल, बाबूजी के संस्कारों से पल्लवित-पुष्पित हैं बेटियां

प्रो. अम्बिका वर्मा

अशेष आशीष का विस्तृत आकाश : शहीद नंदकुमार पटेल के पिता स्व. महेन्द्र सिंह पटेल

भारत-भारती गांवों में बसती है। भारत के असंख्य किसान इनके लाडले बेटे हैं। शहीद नंदकुमार पटेल के पिता स्व. महेन्द्र सिंह पटेल इसी भारतीय किसान की अस्मिता के प्रतीक थे। खेतों एवं कृषि कार्य के प्रति समर्पित, श्रम की मूल्यवत्ता का सम्मान करने वाले और एक औसत किसान की सादगी भरी जिंदगी जीने वाले स्व. महेन्द्र सिंह पटेल, जैसे भारतीय किसान की ही प्रतिछवि थे। गौंटिया परिवार के होने के बावजूद वे किसानों के सच्चे हमदर्द और हमराह थे। वे जीवन पर्यन्त ऐसे ही बने रहे।

एकता की गंगा का अवतरण
स्व. महेन्द्र सिंह पटेल गांव की एकता को ही गांव की समृद्धि का आधार मानते थे। वे जानते थे कि भारत के गांवों की यह नियति है कि राजस्व के झगड़ों के कारण गांव की एकता खंडित होती रही है। यह एक अनूठी और अविश्वसनीय सी लगने वाली बात है कि ग्राम नंदेली में भूमि संबंधी राजस्व के झगड़े नहीं हुए। स्व. महेन्द्र सिंह पटेल ने समझाइश देकर यह व्यवस्था भी दी कि जमीन पर जिसका वास्तविक कब्जा है, जमीन उसी की मानी जायेगी। भले ही पटवारी का नक्शा-खसरा कुछ भी कहता हो। दिलचस्प बात यह कि गांव वालों ने स्व. महेन्द्र सिंह पटेल की यह व्यवस्था स्वीकार की। स्व. पटेल ने एक कदम और आगे बढ़ कर किसानों की जमीनों की आपसी चकबंदी कराई जिससे विवाद की संभावना ही नहीं बची। स्व. महेन्द्र सिंह पटेल की इन व्यवस्थाओं के कारण ग्राम नंदेली का अपना एक सामूहिक चरित्र बना। एकता बलवती हुई। इसी एकता के निर्मल पर्यावरण के कारण गांव में कृषि-समृद्धि आई। ग्राम नंदेली में एकता की गंगा का अवतरण, इस युग के भगीरथ स्व. महेन्द्र सिंह पटेल ने किया था।

संवेदना से स्पंदित हृदय
स्व. महेन्द्र सिंह पटेल के भीतर गहन संवेदना से धडक़ता कोमल हृदय था जो किसी के दर्द, किसी की फिक्र से सीधा जुड़ता था। उनकी भरसक कोशिश होती कि वे लोगों की चिंता, विवाद, समस्याएं आमने-सामने बिठाकर निपटा दें। उनकी कही बात हर पक्ष स्वीकारता भी था। वे स्वयं तो ऐसी ही कोशिशों में होते थे लेकिन अपने यशस्वी पुत्र नंद कुमार पटेल की ऐसी ही कोशिशों से बेहद प्रसन्न होते। इस होनहार बेटे नंदकुमार की सरपंच की, फिर विधायक की भूमिका और अंतत: मध्यप्रदेश शासन में मंत्री बनने के बाद उन्हें लगा कि उनके सेवाकार्य का, पुत्र नंदकुमार द्वारा व्यापक विस्तार हो गया है। उनके भीतर के पिता को बहुत अच्छा लगता था कि जन सामान्य अपनी तकलीफ और अन्य सहायता के लिये नंदकुमार से मिलते हैं। उनका वात्सल्य इस तथ्य से विभोर हो उठता कि उनका योग्य पुत्र लोगों की तकलीफें दूर करने में समर्थ है। उनके देहांत से ग्राम नंदेली ही नहीं, बल्कि आस-पास कई गांवों की आंखें नम थीं। अपनी धरती, अपने खेतों और गांव से बहुत प्यार करने वाले धरतीपुत्र महेन्द्र सिंह पटेल अनंत-आकाश यात्रा में चले गये थे जहां से कोई लौट कर नहीं आता।

वात्सल्य का अमृत कलश, मां स्व. इंदुमती देवी
मां इंदुमती को गहरी धार्मिकर्ता, संस्कारों की विरासत से मिली थी। बिना पूजा-पाठ किये उन्होंने कभी अन्न-जल ग्रहण नहीं किया। इसी आस्तिकता ने उन्हें अपार उदारता दी। वे खुले हाथ से दान-पुण्य करतीं। ससुराल में उन्हें छोटी बहुरिया का आत्मीय संबोधन मिला। अपनी संपूर्ण गरिमा और समर्पण से उन्होंने अपना दायित्व निभाया। उनके लिये उनका यह परिवार ही सब कुछ था। विधाता ने जब उनसे पुत्री-सुख छीन लिया तो उन्होंने अपना संपूर्ण वात्सल्य अपनी भतीजी छत्रकुमारी पर उड़ेल दिया। युवराज सिंह तो उनके लाडले दामाद रहे। उनके वात्सल्य के उदार विस्तार का यह कोमल साक्ष्य है। परिवार के बुजुर्ग भोलाराम गौंटिया मुहावरों की भाषा में बताते है कि कोई एक बहू तो घर ला बोहा दे थे और कोई एक बहू घर ल बोह लेथे। छोटी बहुरिया ने सचमुच पूरे परिवार के भार को अपने कांधों पर बोह लिया था।

विविधवर्णी वात्सल्य
मां इंदुमती तो जैसे वात्सल्य की प्रतिरूप थीं। वर्षों पहले इस सिलसिले में हुई बातचीत में कीर्तिशेष नंदकुमार पटेल ने मुझसे कहा था कि मां ममता का मीठा सागर थीं। मां इंदुमती की लाडली बहु श्रीमती नीला देवी ने बेहद उदास स्वर में कहा था मेरी तो मां ही चली गई। उनके रहने से हमारे सिर पर स्नेह भरे हाथ का स्पर्श अनुभव होता रहता था। चिं. दिनेश और चि. उमेश ने बताया था कि दादी मांं से हम लोग बहुत बतियाते थे। परिहास में उनसे शादी, बारात और ऐसे ही दिलचस्प विषयों पर बातें कर लेते थे। परिहास भरे संबंधों की यह चांदनी अब बिखर गई हैं। इसी प्रकार उनकी दोनों लाडली पौत्रियां आयु. सरोजनी और आयु. शशि ने कहा था कि दादी मां तो हमारी सीनियर फ्रें ड थीं। उन्हे पारम्परिक छत्तीसगढ़ खान-पान अच्छा लगता था। चावल की बनी रोटी ‘पनपुरवा‘ ठेठरी, चउकटा आदि नमकीन व्यंजन उन्हें विशेष प्रिय थे। चूंकि पढ़ाई के कारण हमे ज्यादा समय बाहर रहना पड़ता था अत: वे हम दोनों की बहुत फि क्र करती थीं। गर्मी की छुट्टियों मेें नंदेली आने पर, घर के बड़े से आंगन में, नीले आसमान के नीचे बिछे पलंग पर हम उनके दायें-बायें पसर जाते। फि र वे खूब सारी कहानियां सुनाती। सरोजनी के अनुसार दादी मां बहुत ‘ब्राड थिंकिंग‘ वाली स्त्री थीं। शशि ने बताया था कि पैर छूने पर आशीर्वाद देती थीं कि खूब पढ़ो लिखो और डॉक्टर बनो। सचमुच उनका आशीर्वाद फ लित हुआ और शशिकला डॉक्टर बनीं। उन दिनों चि. दिनेश दिल्ली में एम. बी. ए., सरोजनी भोपाल में बी. फ ार्मा. और चि. उमेश बीआईटी भिलाई में इंजीनियरिंग में अध्ययनरत थे।

फिक्रमंद वात्सल्य
नंदकुमार को मध्यप्रदेश में जब मंत्रीपद का गौरव-दायित्व मिला तो पिता स्व. महेन्द्र के साथ मां इंदुमती भी बेहद हर्षित और गर्वित थीं। यद्यपि वे साक्षर नहीं थीं लेकिन घर में अखबार आते ही वे कदम सिंह से पढ़वातीं और ध्यान से सारी खबर सुनतीं। इस तरह अपने यशस्वी मंत्री बेटे की हर उपलब्धियों और हर जिम्मेदारियों पर उनकी दृष्टि रहती। रायगढ़-खरसिया दौरे में नंदकुमार अपने क्षेत्र से जनसंपर्क कर देर रात तक नंदेली लौटते। मांं इंदुुमती का फि क्रमंद वात्सल्य तब तक जागता रहता। पटेल परिवार के आत्मीय दिलीप पांडेय और शिव राजपूत के प्रति उनका विशेष लगाव था। शिव राजपूत बताते हैं कि मुख्यमंत्री अजीत जोगी के नंदेली प्रवास के समय, भोजन उपरांत वे मां से छत्तीसगढ़ी में बतियाते रहे। वात्सल्य की यह चांदनी 19 मार्च 2003 की भोर में अनंत के आकाश में सदा के लिए बिखर गई।

वात्सल्य की पुण्यमयी गंगा श्रीमती नीलावती नंदकुमार पटेल

नंदेली की वह शाम खामोश सी उदास सी थी। शहीद नंदकुमार पटेल का घर, दालान, आंगन सब कुछ पहले जैसा ही था लेकिन एक वो नहीं थे जिनकी मौजूदगी, पूरे घर को अपनी खुशियों की उजास से रोशन कर जाती थी। एक वह भी नहीं था जिसके होने से, एक युवा सूरज के सदा घर में होने का अहसास दमकता रहता था। माहौल को सहज बनाने के सबब से मैंने हल्की-फु ल्की बातों से शुरूआत की। जैसे पटेल का मनपसंद खाना, प्रिय पहनावा और उनकी अन्य रूचियां आदि। फि र मैंने श्रीमती नीलावती से पटेल साहब के परिवार में उनके आगमन का प्रसंग उठाया। मेरा सहज प्रश्न जिसका संभावित उत्तर भी मुझे मालूम था- क्या नंदकुमार विवाह पूर्व आपको देखने आये थे? लेकिन इसका जवाब मुझे विस्मित कर गया। श्रीमती नीलावती ने बताया- पटेलजी के पिता और मेरे पिता गहरे मित्र थे। हमेशा की तरह वे हमारे घर आये। मैं उस समय छ: मास की थी और पटेल साहब सात साल के। उन्होंने मुझे देखा और मेरे पिता से कहा, आज ले ये नोनी हर हमर बहुरिया और मोर नंदकुमार तुंहर दामाद। फि र चौदह साल बात गौना हुआ और पूरे विधि विधान से वे नंदकुमार की जीवनसंगिनी बन नंदेली के घर-आंगन में आ गईं। समय का पाखी उड़ता गया। इस बीच जीवन की टहनियों में वात्सल्य-पुष्प खिलते गये, जिनके उन्होंने दिनेश, सरोजनी, शशिकला, उमेश नाम रखे।

एक जीवनसाथी के रूप में नंदकुमार का स्वभाव, मिजाज और उनके पारिवारिक सामाजिक रिश्ते जैसे प्रश्नों के उत्तरों में श्रीमती नीलावती काफ ी सहज थीं। उन्होंने कहा कि वे बहुत स्नेह भरे थे, हमेशा मां और बाबूजी का विशेष ध्यान रखते। घर की जिम्मेदारी उनके कंधों पर भी थी। एक समर्पित और योग्य बेटे के रूप में वे अपने पिता के बेहद प्रिय थे। शुरूआती दौर में खेती-किसानी और ठेकेदारी व्यवसाय के बाद जब वे सरपंच बने तो उनकी व्यस्तता बढ़ गई थी। वास्तव में अब पूरा गांव उनका अपना परिवार था। घर-परिवार और सरपंचीय कार्यभार के साथ उनका बहुत अच्छा ताल-मेल था। हमेशा हंसते मुस्कुराते रहते। इसी बीच मैंने एक सवाल किया-क्या पटेल साहब को गुस्सा आता था? हल्की सी मुस्कान के साथ उन्होंने- बिल्कुल! वैसे वे बहुत शांत स्वभाव के थे लेकिन जब कभी उनकी रखी चीजें अपने स्थान पर नहीं मिलतीं, या उन्हें बहुत ढूंढना पड़ता तब तो बहुत गुस्सा हो हो जाते। सारा घर सहमा सा रहता। वे फि र अपने इसी गुस्से को साथ लिये अपने परम मित्र ठाकुर बरन सिंह के घर चले जाते। घंटों वहीं रहते। फि र जब लौटते तो एकदम नार्मल! जैसे कुछ हुआ ही नहीं थ। दोनों में गहरी दोस्ती थी।

शहीद नंदकुमार पटेल अपनी राजनीतिक जीवनयात्रा के अगले दौर में विधायक बने और मंत्री पद से नवाजे गये। इस बदले दौर के घटनाक्रम और परिस्थितियों को जानने की मेरी उत्सुकता ने श्रीमती नीलावती से प्रश्न किया, पटेल साहब की इन वक्तों की घनघोर व्यस्तता के दिनों में आपकी पारिवारिक जिंदगी में क्या बदलाव आये? श्रीमती नीलावती के उत्तर से हम चकित-हर्षित और गर्वित भी थे। उन्होंने बताया- मेरा भोपाल या रायपुर रहना बहुत ज्यादा नहीं हुआ। दरअसल पटेल साहब अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद अपने बाबूजी एवं माता का बहुत ध्यान रखते। उन्हें कभी भी किसी किस्म की तकलीफ न हो यह खयाल हमेशा उनके भीतर बना रहता। इसलिए इसका दायित्व मुझे सौंपा गया। मैं नंदेली में रही और मेरे वहां रहने से पटेल साहब उनकी तरफ से निश्चिंत रहते। मैं उनसे यही कहती कि आप प्रदेश के गृहमंत्री हैं और मैं नंदेली के इस घर की गृहमंत्री हंू। घर में मेरे भाई विरंचि और रूचि दोनों साथ रहे। दोनों मां-बाबूजी का बहुत ध्यान रखते। जरूरत पडऩे पर वे इन्हीं दोनों को पुकारते थे। वे कभी बीमार भी होते तो मैं अच्छे से उनका इलाज करा लेती। घर का टेंशन कभी भोपाल तक नहीं पहुंच पाता।

आगे की बात करते हुए श्रीमती नीलावती का कंठ हमें गौरव से भरा-भरा महसूस हुआ- जब भी पटेल साहब भोपाल या रायपुर अथवा किसी बड़े दौरे से नंदेली लौटते तो सबसे पहले मां-बाबूजी से मिलते। बैठते और बातें करते। सबकी कुशलक्षेम पूछते। इसी तरह भोपाल-रायपुर जाते वक्त भी वे मां-बाबूजी के पास जरूर बैठते। चरण छूकर प्रणाम करके जाते। मैं हमेशा यह मानती रही हूं कि इन दोनों के आशीर्वाद से पटेल साहब का माथा हमेशा ऊंचा रहा और दमकता रहा। वे शुरू से ही ऐसे थे। सबसे मीठा व्यवहार करते। किसी समस्या को लेकर गांव के लोगों की गुहार पर वे आधा कौर छोडक़र पहुंच जाते और समाधान करते।
मेरे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्रीमती नीलावती का जवाब वात्सल्य की दूधिया महक से भरा हुआ था- पटेल साहब की जिंदगी की सबसे खुशी का अवसर था- प्रथम पुत्र रत्पन- बेटे दिनेश का जन्म। पटेल साहब की व्यस्ततम जिंदगी को देखते हुए मैं दिनेश के राजनीति में जाने के पक्ष में नहीं थी लेकिन दिनेश और राजनीति ने एक-दूसरे को चुन लिया था। दिनेश काफी सफल भी रहे। बाद में तो मैंने पटेल साहब को दिनेश से सलाह लेते भी देखा सुना। वे छोटे बेटे उमेश की आईटी इंजीनियरिंग पढ़ाई के प्रति विशेष ध्यान रखते और अब मेरे बेहद संवेदित प्रश्न की बारी थी- नंदकुमार की शहादत की खबर आपको कब और कैसे मिली? सन्नाटा बिखरना स्वाभाविक था। अपने को सम्हालते हुए श्रीमती नीलावती ने कहा- सत्यनारायण की पूजा हुई थी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर पटेल साहब पार्टी की परिवर्तन यात्रा कार्यक्रम में बहुत व्यस्त रहते थे। घर की टीवी में बस्तर के नेता महेन्द्र कर्मा की मौत की खबर आई। बाद में मुझे बताया गया कि टीवी में खराबी आ गई है और टीवी बंद है। यह भी कहा कि रायपुर चलना है। सब के साथ हम लोग रायपुर आ गये। सुबह होते ही मैंने उमेश बेटे से कहा कि भाई (दिनेश) से मिलना है। मुझे बहलाया गया कि वह बिजी हैं, जल्दी मुलाकात होगी। मैंने देखा बहुत भीड़ थी। मुझे कहा गया कि राजीव गांधी आ रहे हैं इसलिये भीड़ है। मैंने अपने फुफेरे भाई आरसी पटेल से दिनेश के बारे में पुन: पूछा। वे बताये कि थाने में बैठे हैं फि र सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आये, तब अनहोनी और आशंका से सिहरती मैं समझ गई कि पटेल साहब के साथ कुछ अनहोनी हुई हैै। गहरे अंधेरे को मैंने अपनी ओर आते देखा और बेसुध हो गई। मेरे जीवन की कैसी विडम्बना थी कि पिता और पुत्र दोनों एक साथ परिवर्तन यात्रा में गये थे और फि र दोनों जीवन की अंतिम यात्रा में भी एक साथ चले गये। बाद में श्रीमती नीलावती ने बताया कि दिनेश को इस यात्रा मेें जाने के लिये मना किया था। 19 मई को मां को बतायेे बिना पहली बार वह बेटा ऐसा गया कि फिर कभी लौट कर नहीं आया।

रायगढ़ में शहीद नंदकुमार पटेल विश्वविद्यालय की स्थापना से श्रीमती नीलावती को बेहद संतोष एवं प्रसन्नता है। उनके अपने शब्दों में इस विश्वविद्यालय के खुलने से मैं बहुत प्रसन्न हूं। हमारे क्षेत्र के हजारों बच्चों को लाभ होगा। उन्हें दूर भटकना नहीं पड़ेगा। नये विषयों की पढ़ाई भी संभव हो सकेगी। इस अवसर पर एक विव्हल मां का तरल वात्सल्य भी छलका, मैं चाहती हूं कि मेरे बेटे दिनेश की शहादत की स्मृति में सारे विषयों के एक वृहत कालेज की स्थापना हो। हमारे देश में रिश्तों की बनावट और बुनावट में ढेर सारे रिश्तों के नाम हैं। हमारे मनीषी ऋ षियों ने जब परमात्मा को तमाम रिश्तों में से किसी एक रिश्ते का देना चाहा तो मार्कण्डेय ऋ षि ने चुना मां को। उनके भाव विभोर शब्द थे- या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै: नमस्तस्यै: नमो नम:। मांं नीलावती देवी, मार्कण्डेय ऋ षि की इसी पावन प्रार्थना का प्रतिनिधित्व करती हैं और आज के कवि की भी अभ्यर्थना है:- इस धरती पर जितने बच्चे हैं, उन्हें मालूम हो कि जब वे मां कहते हैं तो वास्तव में ईश्वर का नाम लेते हैं।

पिता के वात्सल्य जैसे अग्रज राधाचरण पटेल

बड़े भैया राधाचरण पटेल और शहीद नंदकुमार पटेल के बीच उम्र का एक बड़ा फासला था। उनके लिए नंदकुमार अनुज नहीं पुत्र तुल्य ही थे। बड़े गौटिया के निधन के बाद भाई के साथ पिता का स्नेह भी समवेत होकर अनुज नंदकुमार के सिर माथे सजा रहा। शहीद नंदकुमार पटेल की हर उपलब्धि उन्हें सहज रूप से गर्वित करती। हमारे नंदेली पहुंचने की सूचना पर वे स्वयं इस पर पहुंच गये और फि र शुरू हुआ बातों का सिलसिला। शुरूआती प्रश्न था कि नंदकुमार के व्यक्तित्व में ऐसी क्या बात थी जो उन्हें सर्वप्रिय एवं सर्वस्वीकृत युवा के रूप में प्रतिष्ठित करती रही? राधाचरण का जवाब था, वे हमेशा मुस्कुराते रहते। कभी गुस्सा नहीं करते। नंदकुमार को खेती किसानी को नयी विधियों और उपकरणों के साथ जोडक़र अधिकतम फ सल प्राप्त करने में सफलता मिली थी। खासकर सिंचाई के प्रति उनका विशेष ध्यान था। उन दिनों मांड नदी से मोटर पम्प द्वारा सिंचाई की शुरूआत कर उन्होंने सबका ध्यान आकृष्ट किया था। वे सबसे मिलते। उनकी समस्याओं को सुनते और उसका प्रभावी निराकरण करते। गांव के लोग नंदकुमार की बात मानते थे। उन्हें लगता था कि नंदकुमार से जुडक़र अपना और अपने गांव का भला कर सकते हैं। राधाचरण बताते हैं कि हमारे पिता कीर्तिशेष महेन्द्र सिंह पटेल, नंदेली सहित कई गांव में ग्राम्य विकास के प्रति समर्पित पहले व्यक्ति थे। छोटे भाई नंदकुमार ने मेहनत, संकल्प और निरंतर कोशिशों से गांवों की विकास-गति को तीव्रता प्रदान की। इसी कारण से वे सरपंची से शुरू कर प्रदेश के गृहमंत्री के पद तक पहुंचे। वे हमारे परिवार या नंदेली के ही गौरव नहीं थे बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के गौरव थे। मैं अपने अनुज के पुण्य आत्मा को नमन करता हूं।

बाबूजी के संस्कारों से पल्लवित-पुष्पित हैं बेटियां

शहीद नंदकुमार पटेल जिस गुलशन के बागवान थे, उसमें दो बेटे और दो बेटियों की प्रतिभा की महक से परिवार सुवासित था। ज्येेष्ठ पुत्र दिनेश उनके प्रथम पुत्ररत्न के रूप में सबसे दुलारे और प्यारे थे। वहीं बड़ी बेटी सरोजिनी और छोटी बेटी शशिकला ने भी अपनी प्रतिभा से परिवारजनों को गौरवान्वित किया। उमेश भाई-बहनों में सबसे छोटे होने के कारण सबके दुलारे थे। वे धीर गंभीर व्यक्तित्व एवं अंतर्मुखी प्रवृत्ति के रहे हैं। बेटी सरोजिनी और शशिकला अपने पिता के स्नेह और दुलार से अभिभूत रहती थीं जिनकी ज्ञानवर्धक बातों को वे आज अपनी पूंजी मानकर सहेजी हुई हैं। अपने जीवन पथ के लिए पिता की शिक्षा और संस्कार को अनमोल धरोहर मानती हैं जिनकी बदौलत वे अपने-अपने क्षेत्र में प्रतिष्ठित हैं।

बेटियों को शिक्षा के लिए देते थे हमेशा प्रोत्साहन
शहीद नंदकुमार पटेल की बड़ी बेटी सरोजिनी पटेल बताती हैं कृषक पृष्ठभूमि और परंपरावादी परिवार होने के बावजूद बाबूजी शहीद नंद कुमार पटेल बेटियों की शिक्षा और ज्ञानार्जन के प्रति पूरी स्वतंत्रता देते पढ़ाई के लिए हमें प्रोत्साहित करते और आगे बढऩे के लिए प्रेरणा देते थे। मेरी प्रारंभिक शिक्षा ग्राम के स्कूल में ही पूर्ण होने के बाद रायगढ़ के निजी विद्यालय में हॉस्टल में रहकर हायर सेकेंडरी की पढ़ाई पूरी की और बाद में फार्मेसी की डिग्री ली एवं एमबीए कर मैंने वैवाहिक जीवन में प्रवेश किया। आज बाबूजी की सीख हमें कदम कदम पर पथ प्रदर्शित करती है।

बहुत ही सरल ढंग से कह देते थे गूढ़ बातें
छोटी बेटी डॉ. शशिकला बताती हैं बाबूजी हमेशा जीवनोपयोगी हर बात को हमें अच्छे से समझाया करते थे और वे अपने बेटे-बेटियों के बीच कभी भी भेद नहीं करते। हमें शिक्षा, संस्कार और व्यवहार की बातें तो सिखाते ही थे साथ साथ अपनी सुरक्षा और पारिवारिक जिम्मेदारी से भी अवगत कराते रहते थे। बाबूजी के निर्णय और निर्देशों में बड़ी-बड़ी गूढ़ रहस्य की बातें और हमारे भविष्य से संबंधित अहम निर्णय शामिल होते थे।

पारिवारिकजनों के कुशल-क्षेम से हमेशा जुड़े रहते
दोनों बेटियां बताती हैं कि बाबूजी का कार्यक्षेत्र विस्तृत होने के बावजूद वे पारिवारिक सदस्यों की अपेक्षाओं को हमेशा ध्यान रखा करते थे वह कहीं भी रहे अपने संपर्क माध्यम से घर के लोगों का हाल-चाल और कुशल क्षेम की जानकारी रखा करते थे उनके प्रत्येक निर्णय और जिम्मेदारी निर्वहन में मेरी मां श्रीमती नीलावती पटेल का भरपूर सहयोग और समर्पण भाव होता था।

इस तरह द्रवित हो जाते थे बाबूजी
छोटी बेटी डॉ. शशिकला पटेल अपने पिताजी की सहृदयता को याद करते हुए बताती हैं जब हम रायगढ़ में पढ़ते थे और ग्राम नंदेली के लिए अपनी जीप से बाबूजी हमें घर ले जाने को आते थे। रायगढ़ से नंदेली जाने के दौरान रास्ते में कभी-कभी बारिश होती और ग्रामीणजन बारिश से बचने पेड़ों के नीचे खड़े रहते थे, उन्हें देखकर बाबूजी उनके करीब जाते। उनका पता पूछते फि र अपनी गाड़ी से उन्हें उनके घर तक पहुंचाने जाते। इतने सेवाभावी व्यक्तित्व के धनी थे- बाबूजी नंदकुमार पटेल।

भाई उमेश भी चल रहे बाबूजी के पदचिन्हों पर
शहीद नंदकुमार पटेल की बड़ी बेटी सरोजिनी पटेल अपने अनुज छत्तीसगढ़ शासन में कैबिनेट मंत्री उमेश पटेल के दायित्व और जिम्मेदारी को भी कम नहीं मानती हैं। उनका कहना है, बाबूजी के व्यक्तित्व और कार्यशैली तो एक मिसाल के रूप में था वह अतिविशिष्टजनों में प्रतिष्ठित रहे किंतु भाई उमेश पटेल भी बाबूजी के पद चिन्हों पर चलते हुए अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। अप्रत्याशित रूप से राजनीति में आने के बावजूद वे पूरी विधानसभा के साथ छत्तीसगढ़ के मंत्रिमंडल में अपने विभागों के दायित्वों का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। हम अपने बाबूजी शहीद नंदकुमार पटेल के शिक्षा संस्कार और दी गई सीख को अपनी अनमोल पूंजी के रूप में संभाल कर रखे हैं जिससे अपने जीवन पथ पर कदम कदम पर एक सफ ल नागरिक बनने की ओर अग्रसर हैं।

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