तीन दूसरे जिलों के धान का उठाव लगभग पूरा, समितियां बफर लिमिट से पार
रायगढ़। धान खरीदी के बाद उठाव में राइस मिलर गजब की सेटिंग करते हैं। जहां कुछ गोलमाल करने की गुंजाइश होती है, वहां पहले कूद पड़ते हैं। तभी तो रायगढ़ जिले में धान उठाव भले ही धीमा हो लेकिन दूरे जिलों का मिला हुआ धान तकरीबन पूरा उठा लिया गया है। इस बार भी रायगढ़ के मिलरों को मार्कफेड ने महासमुंद, बेमेतरा और खैरागढ़-छुईखदान का पांच लाख क्विंटल धान दिया है।
समितियों में धान की आवक बहुत तेज हो चुकी है। खरीदी भी उसी गति से की जा रही है। रायगढ़ जिले में रोजाना औसतन करीब 1.15 लाख क्विं. से अधिक धान की खरीदी हो रही है। यह आंकड़ा संदेहास्पद है क्योंकि पिछले साल भी बोगस खरीदी के कारण आंकड़े बहुत ज्यादा थे। अब तक रायगढ़ जिले के सौ उपार्जन केंद्रों 22.80 लाख क्विं. धान खरीदी हो चुकी है जिसमें करीब 14.56 लाख क्विं. धान का उठाव हो चुका है। रोज जितना धान खरीदा जा रहा है, उतने का उठाव नहीं हो पा रहा है। इस वजह से उपार्जन केंद्र बफर लिमिट को पार कर चुके हैं।
राइस मिलरों को बार-बार कहा जा रहा है कि वे जल्द धान उठाव करें लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। वहीं दूसरे जिले का धान उठाने में रायगढ़ के राइस मिलर सबसे आगे हैं। इस बार भी मार्कफेड ने रायगढ़ जिले को महासमुंद का दो लाख क्विं., बेमेतरा का 3 लाख क्विं. और खैरागढ़-छुईखदान का 4300 क्विं. धान का डीओ जारी किया गया था। कुल 5 लाख क्विं. में से केवल दस प्रश धान ही उठाव के लिए बाकी है। जबकि रायगढ़ में 40 प्रश से भी अधिक धान शेष है। दूसरे जिले का धान देने के पीछे मार्कफेड की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं।
डीओ की खुलकर खरीदी-बिक्री
रायगढ़ से महासमुंद सौ किमी, बेमेतरा 250 किमी और खैरागढ़-छुईखदान 340 किमी दूर है। इतनी दूरी के समितियों के काटे गए डीओ से उठाव करने रायगढ़ का कोई राइस मिलर गया ही नहीं। मार्कफेड को भी इन जिलों के आसपास जिलों में राइस मिल नहीं मिले, यह आश्चर्य की बात है। मिलरों ने अपने डीओ वहां के मिलरों को बेच दिए हैं। इसलिए तेजी से उठाव हो गया। इसकी जांच होगी तो गाड़ी नंबरों से पूरी सच्चाई बाहर आ जाएगी।
पिछले साल भी हुआ था परिवहन घोटाला
मार्कफेड मुख्यालय में अलग तरह की सेटिंग चल रही है। धान उठाव के लिए उसी जिले या पास के जिले को आवंटन देने के बजाय 300-400 किमी दूर के जिलों को धान दिया जाता है। मार्कफेड अधिकतम 100 किमी की दूरी तक भाड़ा देता है। इसलिए राइस मिलर उन जिलों में गाड़ी न भेजकर वहीं के मिलरों को डीओ बेच देते हैं। पिछले साल भी रायगढ़ के मिलरों ने ऐसा ही घपला किया था। बिना धान उठाव किए सौ किमी का परिवहन भाड़ा वसूल लिया जाता है। सरकार के इस नुकसान में भी कई लोगों की हिस्सेदारी है।
