- मुकेश जैन
आज शशिकांत भैया को याद किया जा रहा है। उनको लेकर विकास पांडेय ने एक वाकिये का जिक्र किया तो मुझे भी एक किस्सा याद आ गया। उनके तेवर के अनुरूप ही अपने अखबार का नाम उन्होंने सिंहघोष रखा था। उसके विमोचन अवसर पर जब मैं पहुंचा तो उन्होंने अचानक ही मुझसे कहा कि तुम आ गये हो तो अब आज का मंच संचालन तुम करोगे । उस दिन स्व. नंदकुमार पटेल मुख्य अतिथि थे और साथ में आदरणीय आनन्दी सहाय शुक्ल जी, आदरणीय सुभाष त्रिपाठी जैसे दिग्गज मंच पर थे तो संकोचवश मैंने कहा भैया मुझे मत फंसाइये, आप ही संचालन करें लेकिन वे नहीं माने और अंततः मुझे ही संचालन करना पड़ा। मुझे याद है कि मैंने शशि भैया को स्वागत वक्तव्य के लिये आमंत्रित करते समय उनके व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुये ये पंक्तियां कही थी-












‘हमने तमाम उम्र अकेले सफर किया पर किसी खुदा की इनायत नहीं रही हिम्मत से सच कहा तो बुरा मानते हैं लोग। रो-रो के बात कहने की आदत नहीं रही’
कार्यक्रम के बाद सभी अतिथियों ने विशेष तौर पर यह कहा कि तुमने शशि के बारे में बिल्कुल सटीक पंक्तियां कहीं। सुभाष भैया और कुछ अन्य लोगों ने वो पंक्तियां दुबारा मुझसे सुनी थी। आज भी उनका व्यक्तित्व उसी रूप में मेरे जेहन में है। उनकी तेजी के साथ कदम मिला पाना बेहद कठिन काम था। अतः कई बार वो मेरी धीमी रौ को लेकर नाराज हो जाते थे और मेरी तीखी आलोचना भी करते थे लेकिन जब भी मैं उनसे मिलता तो वो बेहद आत्मीयता देते। उनसे बहुत सी अंतरंग बातें भी खुलकर होती थी। उनकी स्मृति को सादर नमन।





