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कहां गए 48 लाख के CCTV कैमरे, DMF से पुलिस विभाग को दी गई थी राशि, खरसिया और घरघोड़ा शहर में लगने थे कैमरे

रायगढ़। डीएमएफ की बंदरबांट में ऐसे-ऐसे कामों के लिए मंजूरी दे दी गई जो अधिसूचित कार्यों से अलग है। स्वीकृत कार्यों की सूची में पुलिस विभाग को भी करीब 60 लाख रुपए आवंटन की जानकारी है। यह राशि सीसीटीवी कैमरे और चेकपोस्ट बनाने के लिए दी गई थी। इन कामों के उपयोगिता प्रमाण पत्र और पूर्णता प्रमाण पत्र नहीं हैं। मतलब काम पूरा हुआ या नहीं, उसके बिल कहां हैं किसी को कुछ नहीं मालूम। रायगढ़ जिले में डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड का मतलब ही बदल दिया गया है। खनन प्रभावित अभी भी प्रदूषण, खराब सडक़ और दूसरी समस्याओं से जूझ रहे हैं। जबकि डीएमएफ का पैसा जानबूझकर ऐसे कामों में खर्च किया गया जो कहीं से भी जस्टीफाई नहीं किया जा सकता। खनन प्रभावित इलाकों में कुछ नहीं बदला है। पिछले आठ सालों में डीएमएफ से जिले को 300 करोड़ से भी अधिक राशि मिल चुकी है।

इस राशि से खनन प्रभावित ब्लॉक घरघोड़ा, तमनार और धरमजयगढ़ की तस्वीर बदल सकती थी। प्रशासन चाहता तो इन क्षेत्रों की सडक़ें सबसे अच्छी होती, प्रदूषण भी नियंत्रित होता, स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाएं बढ़ जातीं। लेकिन साढ़े तीन सौ करोड़ खर्च करने के बाद भी हालात बदतर हैं। इसकी वजह राशि को खर्च करने में विजन की कमी होना है। ऐसे कार्यों में लाखों रुपए फूंक दिए गए जिनके पूरा होने की भी जानकारी नहीं है। वर्ष 20-21 में डीएमएफ से पुलिस विभाग को खरसिया और घरघोड़ा शहर में कई जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए राशि मंजूर की गई। 48, 86, 728 रुपए पुलिस विभाग को दो किश्तों में दिए गए। अब काम पूरा होने के बाद कोई उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिया गया और न ही प्रशासन द्वारा वेरीफिकेशन कराया गया। दोनों शहरों में लगे सीसीटीवी कैमरे काम कर रहे हैं नहीं यह भी संदेह है।

आठ चेकपोस्ट बनाने के लिए भी मिले थे 11 लाख रुपए
पुलिस विभाग को 21-22 में आठ जगहों पर चेकपोस्ट बनाने के लिए भी मनमानी राशि दी गई थी। इसकी कोई ड्रॉइंग-डिजाइन या तय मापदंड नहीं था। इसलिए जितना पुलिस विभाग ने मांगा डीएमएफ से दे दिया गया। एक चेक पोस्ट के लिए 2.76 लाख रुपए स्वीकृत किए गए। कुल 22.08 लाख रुपए मंजूर किए गए थे जिसमें से 11.04 लाख रुपए पहली किश्त के रूप में दिए गए। बिरनीपाली, कंचनपुर, अमलीपाली, लारा, रेंगालपाली, एकताल, हमीरपुर और जमुना में ये चेकपोस्ट बनाए जाने थे। इनमें से कुछ ही जगहों पर चेकपोस्ट हैं।

किसी कलेक्टर ने संवेदनशील होकर नहीं सोचा
जिले में आठ सालों में डीएमएफ को किसी ने संवेदनशील तरीके से हैंडल नहीं किया। सभी कलेक्टरों ने इसे सिर्फ जनप्रतिनिधियों की मांगों के हिसाब से मंजूरी देने में उपयोग किया। अब डीएमएमफ केवल जनप्रतिनिधियों की मांग पूरी करने का साधन बन चुका है। जमीनी स्तर पर जरूरत के हिसाब से प्लानिंग कर अधोसंरचना विकास में उपयोग नहीं किया गया। इसका नतीजा यह है कि कोयला खदान प्रभावित क्षेत्र में परेशानी बढ़ गई है।