रायगढ़। कस्टम मिलिंग में एक से बढ़कर एक धान घोटाले हो रहे हैं। अव्यावहारिक निर्णय लेकर शासन को चपत लगाई जा रही है। रायगढ़ के राइस मिलरों को दूसरे जिलों का डीओ काट दिया गया। जिले भी ऐसे जो आसपास ही नहीं हैं। मिलरों ने भी होशियारी दिखाते हुए डीओ बेच दिए। अब चावल जमा नहीं हो पा रहा है। 80 रुपए प्रति क्विंटल का भाड़ा भी वसूला जाएगा। धान के खेल में कई मिलर लाल हो गए हैं। सांठगांठ इस हैं तरह से की गई कि नुकसान केवल सरकारी खजाने का हुआ। व्यक्तिगत रूप से कई अफसरों और मिलरों को मुनाफा ही मुनाफा हुआ। सबका परसेंट सेट कर मनमानी तरीके से डीओ जारी किए गए लेकिन चावल जमा करने हालत खराब हो गई।
कस्टम मिलिंग में गुपचुप तरीके से राइस मिलरों से सेटिंग कर दूसरे जिलों के धान का आवंटन रायगढ़ जिले के लिए कर दिया। ऐसे जिलों का धान रायगढ़ के मिलरों को दिया गया जहां से उठाव करने में ही नुकसान हो जाएगा। पास के जिलों के मिलरों को धान देने के बजाय सैकड़ों किमी दूर रायगढ़ को चुना गया। इसके पीछे बहुत बड़े घोटाले की नींव रखी गई है। बस्तर का 20 हजार क्विं., सरगुजा 89 हजार क्विं., महासमुंद 2.61 लाख क्विं., बलौदाबाजार 1.49 लाख क्विं. बेमेतरा 65 हजार क्विं. और, रायपुर 20 हजार क्विं. का डीओ रायगढ के मिलरों को दिया गया। इस डीओ से उठाव के बजाय मिलरों ने उसी जिले के मिलरों को डीओ बेच दिया। वहीं के मिलरों ने रायगढ़ के राइस मिलर्स के नाम पर उठाव कर लिया। करीब 5.74 लाख क्विं. धान का उठाव भी हो गया। चावल जमा उसी जिले में किया जाना था जहां का धान था। लेकिन बाहर धान नहीं होने के कारण मिलरों का गेम बिगड़ गया।
पांच करोड़ का वारा-न्यारा
रायगढ़ जिले के कई मिलरों ने बहती गंगा में हाथ धोए हैं। मार्कफेड से अंतर जिला डीओ से धान उठाव पर 80 रुपए प्रति क्विं. प्रति किमी की दर से भुगतान होना है। अधिकतम सौ किमी तक का ही भाड़ा मिलता है। इस हिसाब से करीब 50 करोड़ रुपए की बंदरबांट होनी है। मिलरों को दूसरे जिलों से उठाव करना भी नहीं पड़ा और 80 रुपए की दर से बिल भी बन गया। केंद्रों से धान उठाव करने वाली गाड़ियों के नंबर से इसकी पुष्टि हो जाती है।
किसका कितना परसेंट फिक्स
हैरत की बात है कि बस्तर के धान का डीओ छग के दूसरे कोने में स्थित रायगढ़ के मिलरों को दिया गया। जबकि आसपास के जिलों में मिलर थे। मार्कफेड में मनमाने तरीके से दिए गए डीओ के एवज में बड़ी गड़बड़ी को अंजाम दिया गया। डीओ के आधार पर मिलरों को लाखों के पेमेंट होंगे, जिसमें कई लोगों के हिस्से होंगे। मिलरों को बिना काम के कमाई हुई तो कमीशनखोरी भी बढ़ गई।
