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Home | Raigarh News : आदिवासी मकसीरो की याचिका पर हाईकोर्ट ने गृह सचिव और थानेदार को दिया नोटिस, मांगने पर भी नहीं मिला FIR की कॉपी तो पुलिस अधीक्षक को कॉपी देने का दिया आदेश! मिश्रा चेंबर ने गरीब आदिवासी के पक्ष में खटखटाया था हाईकोर्ट का दरवाजा, मकसीरो को मिली जमानत, सीनियर एडवोकेट अशोक-आशीष मिश्रा ने कहा : न्याय के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा हाईकोर्ट का यह फैसला.. पढ़िए पूरी खबर

Raigarh News : आदिवासी मकसीरो की याचिका पर हाईकोर्ट ने गृह सचिव और थानेदार को दिया नोटिस, मांगने पर भी नहीं मिला FIR की कॉपी तो पुलिस अधीक्षक को कॉपी देने का दिया आदेश! मिश्रा चेंबर ने गरीब आदिवासी के पक्ष में खटखटाया था हाईकोर्ट का दरवाजा, मकसीरो को मिली जमानत, सीनियर एडवोकेट अशोक-आशीष मिश्रा ने कहा : न्याय के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा हाईकोर्ट का यह फैसला.. पढ़िए पूरी खबर

रायगढ़। “रायगढ़ के बहुचर्चित प्रकरण जिसमें राजस्व न्यायालय में मामला जीतने वाले गरीब आदिवासी मकसीरो को अजीत मेहता की रिपोर्ट पर सिटी कोतवाली रायगढ़ द्वारा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420, 467, 468, 471, 120 बी 34 के तहत गिरफ्तारी कर जेल दाखिल कर दिया था, को चुनौती देते हुए अशोक कुमार-आशीष कुमार मिश्रा चेम्बर द्वारा आरोपी मकसीरो की ओर से छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में क्रिमिनल रिट पिटिशन नम्बर। 21/2023 दाखिल कराकर समूची रिमाण्ड कार्यवाही को अवैध होने का दावा करते हुए एफआईआर निरस्त कराने की मांग की गई है।”

12 जनवरी को उक्त रिट याचिका की सुनवाई हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में जस्टिस संजय के. अग्रवाल एवं जस्टिस राकेश मोहन पाण्डेय ने की एवं सुनवाई पश्चात् हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ के गृह सचिव और सिटी कोतवाली के टी. आई. को नोटिस जारी करने को आदेश पारित किया एवं इस प्रकरण को अपवाद मानते हुए जेल में बंद आदिवासी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दे दिया। गरीब आदिवासी की ओर से हाईकोर्ट के संज्ञान में यह बात भी लाई गई कि गरीब आदिवासी को न्याय से वंचित करने के लिये ही इस प्रकरण की एफआईआर को सेंसिटिव बताकर वेबसाईट पर अपलोड नहीं किया गया, ताकि एफआईआर को चुनौती ही न दी जा सके।

यहां तक कि सूचना अधिकार के तहत भी एफआईआर की प्रति आरोपी के वकील को पुलिस ने उपलब्ध नहीं कराया है। हाईकोर्ट के संज्ञान में यह बात लाए जाने पर हाईकोर्ट ने रायगढ़ के पुलिस अधीक्षक को आदेश दिया है कि वे आरोपी को एफआईआर की प्रति उपलब्ध कराए। हाईकोर्ट ने आरोपी को एफआईआर की प्रति संलग्न करने से छूट देने का भी आदेश पारित किया है क्योंकि मांगने के बाद भी उसे पुलिस ने एफआईआर की कापी नहीं दिया है। इस प्रकरण में लम्बी बहस सुनने के बाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में लेख किया है कि यदि आरोपी पर न्यायालय में झूठा शपथपत्र देने का आरोप है, तो रिपोर्टकर्ता को धारा 193 भा. दं. वि. के तहत उपचार उपलब्ध था । हाईकोर्ट ने क्रिमिनल रिट पिटिशन में

आरोपी को जमानत पर छोड़ने का आदेश दिये जाने को अपवाद करार देते हुए आरोपी मकसीरों को 25000 रू. की जमानत पर मुक्त करने को आदेश पारित कर दिया एवं छत्तीसगढ़ शासन के गृह सचिव तथा कोतवाली के टी.आई को 10 दिन के भीतर शपथपत्र के साथ अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने इन दोनों को हाथों हाथ नोटिस तामील कराने की भी अनुमति दे दिया है। मिश्रा चेम्बर के सीनियर एडवोकेट अशोक कुमार – आशीष मिश्रा ने बताया कि प्रदेश का यह पहला मामला है, जिसमें हाईकोर्ट ने क्रिमिनल रिट में जमानत पर छोड़ने का आदेश दिया हो।

हाईकोर्ट के इस आदेश की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हुए मिश्रा चेम्बर के सीनियर एडवोकेट अशोक कुमार आशीष कुमार मिश्रा ने इसे न्याय क्षेत्र में मील का पत्थर होना बताया। सीनियर वकील आशोक कुमार मिश्रा ने कहा कि इस मामले का सबसे दुर्भाग्य जनक पहलू यह है कि लोवर कोर्ट से लेकर सेशन कोर्ट तक ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 एवं 340 तथा भारतीय दण्ड विधान की धारा 193 को पढ़ने के बाद भी इसके अर्थ को नहीं समझा, जिसके कारण एक गरीब आदमी अवैध रूप से जेल दाखिल हो गया एवं उसे न्याय दिलाने के लिये हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। निचली अदालतों की ऐसी ही अनदेखी से पुलिस की मनमानी उत्साहवर्धन होता है एवं अवैध गिरफ्तारी बेरोकटोक जारी रहती है. जिसके प्रति निचली अदालतों को हाईकोर्ट से दिशा- निर्देश दिये जाने की जरूरत है।