रायगढ़। केलो परियोजना में टीवी नहरों का काम पूरा करने प्रशासन ने युद्धस्तर पर कार्य शुरू किया गया है। इस बहुउद्देशीय परियोजना का काम काफी लंबे अरसे से चल रहा है, जिसे पूरा करना बेहद जरूरी है ताकि जिन किसानों के लिए यह परियोजना तैयार की गई है उन्हें इसका लाभ मिल सके। वैसे भी इस परियोजना में 890 करोड़ की लागत आई है, 12 साल से अधिक का वक्त हो चुका है ऐसे में परियोजना का काम पूरा करना समय की सबसे बड़ी मांग बन चुकी है। बीते दिनों वितरक और लघु नहरों का काम फिर से शुरू किया गया। रायगढ़ के करीब नेतनागर में 1.6 किमी नहर का काम किया जाना बाकी है, लेकिन यहां काम शुरू करने पहुंचे ठेकेदार और उनके लोगों से अधिग्रहित जमीन के किसानों के बीच हुए विवाद के बाद काम रुक गया था।
प्रशासन और पुलिस को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा, लेकिन किसान पानी और मुआवजे को मुद्दा बनाते हुए काम नहीं करने देने पर अड़े हुए हैं। इसको लेकर कलेक्टर, विधायक रायगढ़ और किसानों के बीच त्रिपक्षीय वार्ता हुई। वार्ता के बाद किसानों ने नहर के दूसरी छोर से काम करते आने पर नेतनागर में काम पूरा करवाने पर अपनी सहमति जताई थी, लेकिन दूसरे दिन किसान नहर बनने के बाद वहां पानी नहीं पहुंचने और आज के दर पर मुआवजे की बात को लेकर अड़े हुए हैं। सिंचाई विभाग के आला अफसरों से जब इस मुद्दे पर बात की गई तो कई बातें सामने आई। किसानों ने पहले खरीफ के साथ रबी फसल में पानी दिए जाने की बात लिखित में देने की मांग रखी थी। इस पर ईई केलो परियोजना पीआर फुलेकर ने बताया कि किसी भी डैम में बारिश का पानी स्टोर कर रखा जाता है ताकि जरूरत पडऩे पर उसका उपयोग किया जा सके।
इसमें सिंचाई के साथ पेयजल और निस्तारी के लिए पानी दिया जाता है। कम बारिश की स्थिति में खरीफ फसलों के अंतिम चरण में अथवा जरूरत अनुसार पानी दिया जाता है। इसके अलावा डैम में गर्मी के मौसम में पेयजल और निस्तार के लिए पानी स्टोर कर के रखा जाता है। किसानों को सिंचाई के लिए कब और कितना पानी दिया जाना है ये फैसला तात्कालिक स्थितियों के आधार पर लिया जाता है। सभी बांध परियोजनाओं में इसी आधार पर कार्य होता है, ऐसे में किसानों को रबी फसल में सिंचाई के लिए पानी दिए जाने का लिखित आश्वासन देना हमारे लिए संभव नहीं है। किसान ये बात भी कह रहे हैं कि टेल एरिया होने और ऊंचाई में स्थित होने के कारण यहां पानी पहुंचने को लेकर शंका है। इस मुद्दे पर पीआर फूलेकर ने कहा कि किसानों की इस बात का कोई आधार नहीं है क्योंकि केलो परियोजना का डैम काफी ऊंचाई पर बना है। यहां से सक्ती जिले तक पानी पहुंचेगा। नेतनागर तो वैसे भी केलो परियोजना से करीब है और केलो परियोजना की ऊंचाई नेतनागर से लगभग 27 मीटर अधिक है। इसे टेल एरिया कहना उचित नहीं होगा क्योंकि यहां पर नहर का काम इसलिए खत्म किया जा रहा क्योंकि आगे राज्य की सीमा खत्म हो रही है। इसका पानी के बहाव से संबंध नहीं है। नेतनागर से ज्यादा ऊंचाई में स्थित बाजू के गांव झलमला में नहर का काम पूरा हो चुका और वहां भरपूर पानी पहुंचा है। ऐसे में नेतनागर में पानी नहीं पहुंचने की आशंका निर्मूल है।
कहा जा रहा है कि बांध की ऊंचाई पहले जो थी उससे 6 मीटर घटा दी गयी है जिसका असर पानी के सप्लाई पर पड़ेगा और यह भी कारण है कि नेतनागर तक पानी शायद न पहुंचे। इसको लेकर अधिकारियों ने कहा कि परियोजना में पहले सिंचाई के साथ बिजली निर्माण करने का प्रस्ताव भी शामिल था, जिसके कारण डैम की ऊंचाई अधिक रखी गयी थी, किंतु बाद में बिजली उत्पादन के प्रपोजल को निरस्त कर दिया गया तो डैम की ऊंचाई भी नही बढ़ाई गयी क्योंकि इससे डूबान क्षेत्र भी बढ़ता जिसका कोई अर्थ नहीं था। प्रस्तावित नहरों में पानी सप्लाई करने के लिए डैम की वर्तमान ऊंचाई और स्टोरेज क्षमता पर्याप्त है।
नेतनागर में जमीन अधिग्रहण पूरा कर अवार्ड पारित कर दिया गया है। भू-अर्जन अधिनियमों के तहत मुआवजे की रकम तय की गयी। किसानों को वितरण के लिए चेक तैयार कर उन्हे वितरित करने कैंप लगाए गए। अभी मुआवजे को लेकर जिन किसानों को असंतोष है। उन्हें प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि वे उचित फोरम में अपनी बात रख सकते हैं।
