Skip to content
Home | CG News: एम्स में बनेगा छत्तीसगढ़ का नार्को एनालिसिस सेंटर

CG News: एम्स में बनेगा छत्तीसगढ़ का नार्को एनालिसिस सेंटर

रायपुर। छत्तीसगढ़ पुलिस और जांच एजेंसियों को नार्को टेस्ट के लिए दूसरे राज्य नहीं जाना पड़ेगा। रायपुर एम्स में जल्द ही नार्को एनालिसिस सेंटर खुलेगा। राज्य सरकार के निर्देश पर पुलिस विभाग इसकी तैयारियों में जुटा हुआ है। इसी कड़ी में पुलिस महकमे के उच्च अधिकारियों ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में नार्को एनालिसिस सेंटर बनाने के लिए प्रस्ताव तैयार कर एमओयू करने के लिए भेजा है। एम्स प्रबंधन ने भी नार्को एनालिसिस सेंटर स्थापित करने में रूचि दिखाई है। प्रबंधन का कहना है कि एम्स में सभी तकनीकी सुविधाएं उपलब्ध है। सेंटर स्थापित करने में कोई परेशानी नहीं होगी।

वर्तमान में पुलिस और जांच एजेंसियों को आरोपी के नार्को टेस्ट के लिए हैदराबाद जाना पड़ता है, जिसमें काफी समय लग जाता है। कई मामलों में कोई ना कोई बहानाकर आरोपित हैदराबाद जाने से मना भी कर देते हैं, जिससे जांच में पुलिस को मशक्कत करनी पड़ती है। नार्को टेस्ट का ज्यादातर उपयोग हाई प्रोफाइल केस में ही किया जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, नार्को टेस्ट के दौरान मालिक्यूलर लेवल पर आरोपित के नर्वस सिस्टम में दखल देकर उसकी हिचक कम की जाती है। नींद जैसी अवस्था में अपराध के बारे में प्रमाणिक सत्य प्राप्त करने का प्रयास होता है। इंजेक्शन वाले पदार्थ की डोज आरोपित के लिंग, आयु, स्वास्थ्य और शारीरिक स्थिति के अनुसार तय होती है। नार्को टेस्ट की प्रक्रिया के दौरान विशेषज्ञों द्वारा लगातार निगरानी की जरूरत होती है। ब्लड प्रेशर या पल्स गिर जाता है तो अस्थाई तौर पर आक्सीजन भी दी जाती है। नार्को टेस्ट में मनोचिकित्सक की महती भूमिका रहती है।

Narco test procedure पुलिस और जांच एजेंसियां जघन्य और हाईप्रोफाइल मामलों में आरोपित से जुर्म स्वीकार कराने नार्को टेस्ट कराती हैं। इसके लिए विशेषज्ञ की ओर से सवाल तैयार किए जाते हैं। इसे टेस्ट के दौरान आरोपिता से सवालों को पूछा जाता है। उनकी जानकारी के आधार पर आगे की विवेचना कर साक्ष्य एकत्रित किए जाते हैं। इस टेस्ट की वीडियोग्राफी होती है। नियमों के मुताबिक, नार्को टेस्ट कराने के लिए व्यक्ति की सहमति भी जरूरी होती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश है कि नार्को एनालिसिस, ब्रेन मैपिंग और पालीग्राफ टेस्ट किसी भी व्यक्ति की सहमति के बिना नहीं किए जा सकते हैं।

बताया जाता है कि टेस्ट के दौरान पहले जांचकर्ता को लैबोरेटरी में भेजा जाता है, जहां उसे विस्तार से जानकारी दी जाती है। इसके बाद फिर मनोवैज्ञानिक के पास जांच अधिकारी के साथ एक सत्र होता है। लैबोरेटरी के विशेषज्ञ आरोपी के साथ बातचीत करते हैं, जहां उसे टेस्ट की प्रक्रिया के बारे में अवगत कराया जाता है। मनोवैज्ञानिक के संतुष्ट होने के बाद उसको डाक्टरी जांच के लिए भेजा जाता है। उसके बाद प्रक्रिया शुरू होती है।