रायगढ़। इन दिनों कांग्रेस की सियासत में सर्वाधिक घमासान सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले में देखने को मिल रहा है। इसका मुख्य कारण है सारंगढ़-बिलाईगढ़ अलग जिले के रूप में अस्तित्व में आ गया है। नया जिला बनने के बाद सारंगढ़-बिलाईगढ़ का इतिहास-भूगोल सब कुछ बदल गया है फिर राजनीति इस बदलाव से अछूता कैसे रह सकती है। सारंगढ़ बिलाईगढ़ जिला कांग्रेस अध्यक्ष के सवाल पर राजनैतिक खदबदाहट कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रही है। यहां अध्यक्ष बनने से ज्यादा कांग्रेसियों की रूचि अरूण मालाकार को प्रथम कांग्रेस अध्यक्ष बनने से रोकने में है। सारंगढ़ जिले की कांग्रेसी सियासत में हाल ही के कुछ दिनों में भारी उलटफेर देखने को मिल रहा है।
यथा, अरूण मालाकार पर जो कांग्रेस नेता आंख मूंद कर जान लुटाते थे- उनमें से कई चेहरे अब तटस्थ भूमिका में आ गए हैं। इन चेहरों में वरिष्ठ नेता पुरूषोत्तम साहू पण्डित संजय दुबे व सूरज तिवारी के नाम मुख्य रूप से शामिल हैं। सार्वजनिक तौर पर यह अंतर्विरोध नजर नहीं आता है लेकिन अंदरखाने की बात ही कुछ और है। संसदीय सचिव व बिलाईगढ़ विधायक चन्द्रदेव प्रसाद राय व पूर्व विधायक श्रीमती पदमा मनहर के पति घनश्याम मनहर किसी भी सूरत में अरूण मालाकार की ताजपोशी को रोकना चाहते हैं। इस रणनीति का सीधा ताल्लुक सारंगढ़ विधानसभा सीट की राजनीति से है। इस मुहिम को रायगढ़ विधायक प्रकाश नायक का आंशिक आशीर्वाद हासिल है। सारंगढ़ विधायक श्रीमती उत्तरी गणपत जांगड़े को कमजोर करने के इरादे से अरूण मालाकार की कांग्रेसी तगड़ी घेराबंदी कर रहे हैं क्योंकि उत्तरी जांगड़े के विरोध यह बात बखूबी जानते हैं कि अरूण मालाकार येन केन प्रकरण परास्त होते हैं तो इसका सीधा असर उतरी गणपत जांगड़े की सियासी सेहत पर पड़ेगा।
हालांकि अरूण मालाकार को कमजोर करना इतना आसान नहीं है । चन्द्रदेव राय व घनश्याम मनहर की मौजूदा जुगलबंदी के प्रत्यक्ष प्रभाव अभी से दिखने लगे हैं। बरमकेला ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष ताराचंद पटेल को जिला कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की मांग इसी सियासी व्यूह रचना का एक हिस्सा है। सियासत में चल रहे घात – प्रतिघात के इस खेल में वजीर के बहाने राजा को निपटाने की रणनीति है। ऐसी बात नहीं है कि अरूण मालाकार अपने खिलाफ चल रहे तमाम गतिविधियों से बेखबर हैं बल्कि वे राजनीतिक उठापटक पर पैनी निगाह रख रहे हैं, मतलब वेट एण्ड वॉच, अरूण सही वक्त पर अपने पत्ते खोलेंगे। वैसे भी पिछले कुछ वर्षो में अरूण मालाकार मंजे हुए राजनीतिज्ञ बन चुके हैं। उनकी छवि भी काफी निखरी है। सशक्त जनाधार संगठनात्मक दांव पेंच में माहिर, कार्यकर्त्ताओं में लोकप्रियता व चुनावी प्रबंधन में दक्षता यह अरूण मालाकार के सियासी सफर का मूल्यवान आभूषण है।
वैसे भी सारंगढ़ की कांग्रेसी सियासत को करीब से समझने वाले प्रेक्षकों का यह अनुभव रहा है कि सारंगढ़ में वन वर्सेस ऑल की राजनीति का रिवाज शुरू से ही रहा है। ऐसे में वन मैन आर्मी माने जाने वाले अरूण आगे आने वाले सियासी खतरों से भली-भांति वाकिफ हैं। वहीं मालाकार के विरोधी खेमे का मानना है कि यदि हम अरूण को ठिकाने लगा देते हैं तो विधायक उत्तरी जांगड़े खुद को अवश्य कमजोर महसूस करेंगी और श्रीमती पदमा मनहर की दावेदारी की राह आसान हो जाएगी। आने वाले दिनों में सारंगढ़ कांग्रेस की सियासत में बवंडर मचेगा या नहीं, यह पूरी तरह से अरूण मालाकार की संभावित जीत व हार पर निर्भर करता है।
