पूर्व कलेक्टर ने बिना अनुमोदन के दी थी अनुमति, कलेक्टर रानू साहू ने लगाई रोक
रायगढ़। पिछले तीन सालों में डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड को लेकर जितनी अनियमितता की गई है, उतनी शायद ही कभी हुई हो। जहां चाहा, जैसे चाहा खर्च कर दिया। पूर्व कलेक्टर ने इसी तरह किरोड़ीमल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के स्टाफ को वेतन देने के लिए दो करोड़ रुपए स्वीकृत किए थे। यह नियम विरुद्ध था फिर भी अनुमति दी गई। लेकिन अब इस पर रोक लगा दी गई है। डीएमएफ के तहत रायगढ़ जिले को हर साल 50 करोड़ से अधिक राशि मिलती है। इसे खर्च करने का अधिकार शासी परिषद को होता है जिसके अध्यक्ष कलेक्टर होते हैं। इसमें खनन प्रभावित क्षेत्र के जनप्रतिनिधि भी शामिल होते हैं।
परिषद की बैठक में सभी कायों को सूचीबद्ध कर अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया जाता है। चर्चा में जिस कार्य को प्राथमिकता दी जाती है, उसके लिए राशि दी जाती है। खनन से प्रत्यक्ष प्रभावित क्षेत्र के लिए 60 प्रश राशि खर्च करने का प्रावधान है। रायगढ़ जिले में एकमात्र शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज के आईटी भी डीएमएफ से लाभान्वित रहा है। अच्छी-खासी उच्च शिक्षण संस्था को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। धीरे-धीरे एडमिशन भी कम होते गए। फैकल्टी और कर्मचारियों को 18 महीने से वेतन नहीं मिला है। केआईटी की समस्या का हल उच्च शिक्षा विभाग को ही खोजना है लेकिन हैरत की बात है कि पूरी समस्या जिला प्रशासन के मत्थे मढ़ा जा रहा है। पूर्व कलेक्टर ने केआईटी को वेतन देने के लिए दो करोड़ रुपए की स्वीकृति दी थी लेकिन यह नियम विरुद्ध होने के कारण वर्तमान कलेक्टर रानू साहू ने इस पर रोक लगा दी है। इधर उच्च शिक्षा विभाग केआईटी का कोई हल नहीं ढूंढ पाया है।
वेतन देने के लिए नहीं है डीएमएफ
डीएमएफ में जो राशि जमा होती है वह कोयला खदानों और अन्य खनिजों के खदानों में उत्पादन से प्राप्त राजस्व का ही हिस्सा है। इसलिए डीएमएफ के रूप में उन लोगों का जीवन सुधारने की पहल की गई जो खदान प्रभावित इलाके में रहते हैं। उन क्षेत्रों में यह राशि अधोसंरचना विकास समेत मूलभूत सुविधाओं में खर्च होनी थी। किसी को वेतन देने के लिए डीएमएफ नहीं होता है, लेकिन रायगढ़ में केआईटी को पहले भी करीब डेढ़ करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं।
प्रभारी मंत्री को बनाया था अध्यक्ष
बीच में राज्य सरकार ने डीएमएफ के शासी परिषद में प्रभारी मंत्री को अध्यक्ष बनाने का आदेश दिया था जिसे केंद्र सरकार ने अवैध कहकर खारिज कर दिया। इसके बाद पुनः कलेक्टर ही अध्यक्ष हो गए। डीएमएफ की राशि से खनन प्रभावित क्षेत्रों की सबसे ज्यादा मदद की जानी थी लेकिन रायगढ़ जिले में इसका उल्टा हुआ। ऐसे-ऐसे कामों में डीएमएफ की राशि खर्च की गई जिससे खनन प्रभावित क्षेत्र का कोई संबंध नहीं था। डीएमएफ का ऑडिट भी नियम विरुद्ध तरीके से कराया गया है। करोड़ों की बंदरबांट में कई विभाग भी शामिल हैं।
