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सेस देना था तो कम बताई लागत, सब्सिडी लेते समय तीन गुना इजाफा

कई फर्मों ने किया फर्जीवाड़ा, सीए सर्टिफिकेटों पर भी सवाल, पर्यावरण, उद्योग विभाग और औद्योगिक स्वास्थ्य व सुरक्षा विभाग में चल रही गड़बड़ी, सरकार को नुकसान पहुंचाकर भर रहे अपनी जेब

रायगढ़, 25 फरवरी। उद्योग लगाने के नाम पर ऐसा फर्जीवाड़ा चल रहा जिसमें तीन विभागों की मिलीभगत सामने आ रही है। जहां उद्योग संचालक को उपकर देना होता है, वहां प्रोजेक्ट कॉस्ट या लागत कम कर दी जाती है। लेकिन जैसे ही जिला व्यापार एवं उद्योग केंद्र में प्रोडक्शन सर्टिफिकेट और लेने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया जाता है तो लागत में तीन गुना बढ़ोतरी हो जाती है। अलग-अलग विभागों में अलग लागत दिखाकर लाभ उठाया जाता है।

सब्सिडी के रूप में सरकार से करोड़ों रुपए ऐंठे जा चुके हैं। संबंधित उद्योग संचालक बड़ी ही चतुराई से अपने प्रोजेक्ट कॉस्ट को बदलते रहते हैं। आईएचएसडी में सेस देना होता है, वहां कम लागत दिखाई जाती है ताकि कम उपकर देना पड़े। इसी तरह डीआईसी में लागत को बढ़ा दिया जाता है, जिससे सब्सिडी ज्यादा मिले। ऐसे दो फर्मों की गड़बड़ी सामने आई है। महालक्ष्मी राइस मिल ग्राम अमुर्रा बरमकेला के संचालक माया देवी अग्रवाल और आकाश अग्रवाल ने आईएचएसडी में लाइसेंस के लिए आवेदन किया जिसमें लागत 53.20 लाख रुपए बताई। उपकर के रूप में एक प्रश राशि 53,200 रुपए चालान के जरिए चुकाए गए।

13 अप्रैल 2022 को राइस मिल प्रारंभ हो गई। इसी फर्म के लिए माया देवी और आकाश ने जब डीआईसी में प्रोजेक्ट रिपोर्ट सबमिट की तो लागत 1,30,68,000 रुपए बताई गई। यह लागत केवल शेड और भवन निर्माण की थी जिसमें सब्सिडी मिली। पुरुष के नाम पर प्रोजेक्ट हो तो 35 प्रश और महिला के नाम हो तो 38.50 प्रश सब्सिडी सरकार देती है। करीब 50 लाख की सब्सिडी ली गई। मतलब जितनी लागत पहले दिखाई गई, उतनी सब्सिडी ले ली गई। यह एक तरह से सरकार के साथ धोखाधड़ी है।

तीन गुना बढ़ गई हनुमान फूड्स की लागत

इसी तरह का फर्जीवाड़ा हनुमान फूड्स मानिकपुर के संचालक ने भी किया है। चंदन अग्रवाल ने श्रम विभाग में 37.50 लाख रुपए की लागत दिखाई जिससे मात्र 37500 रुपए ही सेस देना पड़ा। इसी तरह डीआईसी में सब्सिडी के लिए 1.26 करोड़ की लागत दिखा दी। करीब 40 लाख रुपए की सब्सिडी मिली। अगर आईएचएसडी में भी 1.26 करोड़ की लागत दिखाते तो शासन को 1.26 लाख रुपए सेस देना पड़ता। इस तरह से सरकार को नुकसान पहुंचाया गया है। दो अलग-अलग विभागों में अलग लागत दिखाकर लाभ ले लिया गया।

ऐसे करते हैं गड़बड़ी

राइस मिल, स्पंज आयरन प्लांट या कोई भी लघु उद्योग हो, उसे पर्यावरण विभाग, डीआईसी और औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग में अनुमति लेने के लिए आवेदन करना होता है। जिला व्यापार एवं उद्योग केंद्र से उद्योगों को सब्सिडी भी मिलती है। वहीं पर्यावरण विभाग एवं आईएचएसडी में उपकर का भुगतान करना होता है। दोनों का निर्धारण प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत के अनुसार होता है। यहीं खेल होता है। जहां सेस देना होता है, वहां वैल्युअर का सर्टिफिकेट कम लागत का पेश किया जाता है। इसी तरह डीआईसी में सीए सर्टिफिकेट और प्रोजेक्ट रिपोर्ट में लागत ज्यादा दिखाई, जिस वजह से सब्सिडी ज्यादा मिल गई।

क्या कहते हैं राठौर

दूसरे विभागों में कोई क्या जानकारी दे रहा है, ये मैं नहीं देख सकता। अगर कहीं कोई गड़बड़ी हुई है तो जांच का विषय है। यह धोखाधड़ी है या नहीं मैं कैसे कह सकता हूं – शिव राठौर, जीएम डीआईसी

क्या कहते हैं श्रीवास्तव

हमारी जानकारी में ऐसा कुछ नहीं आया है। आप मुझे दस्तावेज दिखाएंगे तो जान पाउंगा। अंतर की राशि वसूल लेंगे। गड़बड़ी करने पर कार्रवाई का भी प्रावधान है – मनीष श्रीवास्तव, उप संचालक, आईएचएसडी

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