रायगढ़, 15 जनवरी। एक तरफ समितियों में धान खरीदी हो रही है और दूसरी ओर राइस मिलर चावल भी जमा कर रहे हैं। इसके बीच में धान के कई बायप्रोडक्ट हैं जो मिलर खुले बाजार में बेच रहे हैं। लेकिन इसका कोई टैक्स ही नहीं चुकाया जा रहा है। चावल के फ्री सेलिंग का भी मामला सामने आ रहा है। कस्टम मिलिंग में जितने घपले हो रहे हैं, उतने कभी नहीं हुए। मार्कफेड और खाद्य विभाग की सहायता से राइस मिलर मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं। धान उठाव के बाद एफसीआई और नान में चावल जमा किया जा रहा है। धान कूटने के बाद भूसा और कनकी के रूप में बायप्रोडक्ट प्राप्त होता है।












इन दोनों चीजों का कारोबार भी पिछले कुछ सालों में जोर पकड़ा है। खाद्य तेल के लिए भी इसकी डिमांड होती है। राइस मिलर जिले के बाहर इसकी सप्लाई करते हैं। रायगढ़ जिले में इसका कारोबार भी करोड़ों का है। इसमें भारी टैक्स चोरी की जाती है। पूरा काम कच्चे में होता है। खरसिया और रायगढ़ के राइस मिलर यह काम सबसे ज्यादा करते हैं। कनकी और भूसे से हुई आय का कोई हिसाब-किताब नहीं होता। डभरा के कई राइस मिलरों के जरिए यह कारोबार होता है।





फ्री सेल के कारण पूरा नहीं होता लक्ष्य
इन दिनों राइस मिलरों को केवल सरकारी धान की मिलिंग करनी होती है। कई मिलर सरकारी चावल जमा करने के बजाय फ्री सेल कर रहे हैं। सरकार राइस मिलों को अनुमति इसी शर्त पर देती है कि वह पहले सरकारी धान की मिलिंग करेगा। कोचियों और किसानों से अतिरिक्त धान खरीदकर मिलिंग की जा रही है। इस चावल को रायपुर के दो बड़े डीलरों के माध्यम से बाहर भेजा जा रहा है। इसी वजह से कई मिलर तय समय पर चावल जमा नहीं कर पाते।
