रायगढ़। विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही राजनैतिक गहमागहमी तेज हो गयी है। खासकर प्रत्याशी चयन के सवाल पर राय-मशविरा व गोपनीय सर्वे का भी आगाज हो गया है। इन सियासी सरगर्मियों से फिर लैलूंगा विधानसभा सीट कैसे अछूता रह सकता है। लैलूंगा सीट पर पुन: कब्जा जमाने की गरज से बीजेपी सतर्क भी है और चौंकन्नी भी। वैसे तो लैलूंगा सीट पर दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है। यथा-पूर्व संसदीय सचिव श्रीमती सुनीति सत्यानंद राठिया पूर्व विधायक स्व. प्रेमसिंह सिदार की पुत्री श्रीमती लोकेश्वरी सिदार, जनपद पंचायत सदस्य जागेश सिदार पर इन नामों के बीच एक नाम तेजी से उछल रहा है, वह नाम है- जिला पंचायत सदस्य व रायगढ़ राजपरिवार के सदस्य देवेन्द्र प्रताप सिंह का हाल ही के कुछ महीनों में देवेन्द्र प्रताप का पलड़ा का हद तक भारी हुआ है।












सन् १९९० तक लैलूंगा विधानसभा सीट को कांग्रेस की परंपराग सीट माना जाता था। देवेन्द्र प्रताप सिंह के पिताश्री स्व. सुरेन्द्र कुमार सिंह का बतौर विधायक दो दशक से भी अधिक कार्यकाल रहा। हालांकि, सुरेन्द्र कुमार सिंह कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करते थे, वहीं स्व. सुरेन्द्र कुमार सिंह एक बार राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं, तकरीबन २० वर्ष पहले देवेन्द्र प्रताप ने कांगे्रस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया और तब से देवेन्द्र प्रताप भगवा ब्रिगेड के समर्पित सिपाही बने हुए हैं। बीते पंचायत चुनाव में देवेन्द्र प्रताप ने डीडीसी चुनाव लड़ा था, उस वक्त उनके सामने भाजपा के तीन नेता करीबी मुकाबले में थे, और देवेन्द्र प्रताप ने विजयश्री का वरण किया। देवेन्द्र प्रताप की साफ-सुथरी छवि है। वे विवादों मेें कभी नहीं पड़ते।





शांत-सहज व सौम्य व्यक्तित्व के हैं। वे गोंड़ समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। मिशन २०२३ को लेकर भाजपा ने टिकट वितरण का जो मापदण्ड निर्धारित किया है, उस कसौटी पर देवेन्द्र प्रताप शत-प्रतिशत खरा उतरते हैं। वैसे भी लैलूंगा विधानसभा सीट के कुछ हिस्सों पर रायगढ़ पैलेस अच्छा खासा प्रभाव है, इस सत्य की झुठलाया नहीं जा सकता है। देवेन्द्र प्रताप राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रिय पात्र हैं जो उनकी दावेदारी का सर्वाधिक सकारात्मक पहलू हैं। इन परिस्थितियों में देवेन्द्र प्रताप बाकी दावेदारी से काफी आगे नजर आ रहे हैं। ऐसे में भाजपा नेतृत्व देवेन्द्र प्रताप को हरी झण्डी दे देवे तो इसमें कहीं कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए।



