रायगढ़। तमनार में महाजेंको को आवंटित कोल ब्लॉक एरिया में गांवों की जमीनें टुकड़ों में बंटकर बिक गईं। इस बिकवाली में शामिल नेता, अफसरों और सरकारी कर्मचारियों ने करोड़ों के मुआवजे के लालच में खुद भी जमीनें खरीद लीं। कहने को इसकी जांच घरघोड़ा एसडीएम कर रहे थे लेकिन अब इस पर सवाल उठने लगे हैं। अब इस मामले में एक एनजीओ व्हिसलब्लोअर की भूमिका निभाने सामने आई है। बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की जाने वाली है।
रायगढ़ में भूअर्जन घोटालों की लिस्ट बहुत लंबी है। कोई भी रोड, रेल लाइन या उद्योग का प्रोजेक्ट हो, घोषणा होते ही भूमाफिया और दलाल सक्रिय हो जाते हैं। भूअर्जन प्रक्रिया को भी स्थानीय स्तर पर जानबूझकर लटकाया जाता है। कागजी प्रक्रिया पूरी करने में महीनों लगाए जाते हैं। इस बीच जमीनों की छोटे टुकड़ों में रजिस्ट्रियां हो जाती हैं। इस खेल में नेता, नौकरशाह और उनके मातहत कर्मचारी शामिल होते हैं। उन्हीं के इशारे पर यह काम किया जाता है। महाराष्ट्र स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड को तमनार का गारे पेलमा सेक्टर-2 कोल ब्लॉक 2015 में आवंटित किया गया था। इस कोल ब्लॉक की जद में 14 गांव आ रहे हैं। 6 गांव पूरी तरह विस्थापित होने हैं। कंपनी ने प्रारंभ में ही सभी गांवों का सर्वे किया था, तब खातेदारों की संख्या बेहद कम थी। कोई अवैध निर्माण भी नहीं हुए थे। अब इन गांवों की तस्वीर बदल चुकी है।
रायगढ़ के अलावा दूसरे प्रदेशों के लोगों ने भी इन गांवों में टुकड़ों में जमीनें खरीदी हैं। सबसे ज्यादा क्रय-विक्रय 2019 से 2022 के बीच हुए हैं। रोक लगने के बावजूद तत्कालीन एसडीएम से अनुमति लेकर टुकड़ों में रजिस्ट्री होती रही। तमनार के तीन तहसीलदारों ने नामांतरण भी धड़ल्ले से किए। इन जमीनों पर टिन के शेड खड़े कर दिए गए। किसी ने गांव में शॉपिंग कॉम्पलेक्स बना लिया। खेतों के बीच भी शेड खड़ा कर पोल्ट्री फार्म का नाम दिया गया जबकि वहां कुछ भी नहीं है। अब इस मामले में नई दिल्ली की एक एनजीओ सक्रिय हो गई है। बड़े मामलों को अदालत की चौखट पर ले जाने के लिए जानी जाने वाली संस्था ने महाजेंको घोटाले के दस्तावेज जुटाने शुरू कर दिए हैं।
नामी-गिरामी लोगों की अलग सूची
दिल्ली की एनजीओ ने रजिस्ट्री से लेकर नामांतरण की जानकारी भी चुपचाप जुटाई है। इन दस्तावेजों के जरिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका लगाई जाएगी। याचिका में यह तथ्य रखे जाएंगे कि प्रशासन ने कोल ब्लॉक आवंटन के बाद टुकड़ों में जमीन खरीदी-बिक्री पर प्रतिबंध लगाने में देरी की। इसके बाद भी सुनियोजित तरीके से नेताओं, अफसरों, सरकारी मुलाजिमों और उनके रिश्तेदारों के नाम पर जमीनें खरीदने की अनुमति जारी की गई। इसे रोकने के बजाय बढ़ावा दिया गया। ऐसे तथ्यों के साथ दस्तावेजी प्रमाण भी अदालत में प्रस्तुत किए जाएंगे।
महीनों लगाए जांच में
कहने को घरघोड़ा एसडीएम से जांच कराने का आदेश दिया गया था। तब से अब तक तीन एसडीएम वहां पदस्थ हो चुके हैं। पहले ज्वाइंट कलेक्टर डिगेश पटेल ने जांच शुरू की। इसके बाद डिप्टी कलेक्टर रोहित सिंह ने जांच आगे बढ़ाने का दावा किया। अब घरघोड़ा एसडीएम संयुक्त कलेक्टर ऋषा ठाकुर हैं। इतने महीनों की जांच के बाद भी नतीजा शून्य है। इसलिए अब प्रशासन की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं।
