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Raigarh News : कुल रकबे से ज्यादा हो गया फसल का रकबा

एनआईसी के एकीकृत किसान पोर्टल का कमाल, खसरा नंबरों में जितना रकबा दर्ज है उससे ज्यादा का पंजीयन

रायगढ़। धान खरीदी के लिए पंजीयन का सॉफ्टवेयर अब भी खुला हुआ है। जो पंजीयन हुए हैं उसमें बहुत बड़ी गड़बड़ी सामने आ रही है। किसी भी गांव के खसरा नंबर में रकबा निश्चित होता है। यह कभी बढ़ ही नहीं सकता। लेकिन एकीकृत किसान पोर्टल में ऐसा हुआ है। खसरा नंबर के कुल रकबे से अधिक फसल प्रविष्टि का रकबा दर्ज है।

यह बेहद हैरतअंगेज कारनामा है जिसे एनआईसी रायपुर के अधिकारियों और कर्मचारियों ने अंजाम दिया है। धान खरीदी के लिए नियुक्त एजेंसियां खाद्य विभाग, सहकारिता विभाग और मार्कफेड की भूमिका भी संदेहास्पद है। पहले तो गांव ही गायब हो गए थे। इसे ठीक नहीं किया जा सका है। किसानों को भी अपना डाटा पोर्टल में नहीं मिल रहा है। जिन किसानों का डाटा कैरी फारवर्ड हुआ है, उनका आंकड़ा भी नदारद है। गांवों के नाम भी समितियों के बीच एक्सचेंज हो गए हैं। अब उससे भी बड़ी गड़बड़ी सामने आई है। किसी भी गांव का खसरा नंबर स्थाई होता है जिसमें भूमि का रकबा भी तय होता है। खसरा नंबर में यह रकबा नहीं बढ़ सकता। लेकिन किसान एकीकृत पोर्टल में यह भी बढ़ गया है। खसरा नंबर में जितना कुल रकबा है, उससे अधिक फसल की एंट्री हो गई है। मतलब खसरा नंबर में कुल जितनी जमीन है, उससे अधिक भूमि पर बोए गए फसल का रकबा हो गया है। मतलब उदाहरण के तौर पर किसी खनं में कुल रकबा दो एकड़ है तो उसमें धान का रकबा 3 एकड़ दिखा रहा है। जबकि यह ज्यादा हो ही नहीं सकता।

इसे ऐसे समझें
उदाहरण के तौर पर धरमजयगढ़ के ग्राम भोजपुर में खसरा नंबर 447/2 में कुल रकबा 0.0200 हे. है। जबकि पोर्टल में इस खसरा नंबर में 0.0400 हे. भूमि पर साग-भाजी लगाने की एंट्री की गई है। इसी तरह कोतरलिया में खसरा नंबर 453/1 का कुल रकबा 1.5870 हे. है। पोर्टल में इस खनं के 1.8920 हे. में उड़द और मूंगफली बोए जाने की एंट्री कर दी गई है। ऐसी गड़बड़ी को ठीक करने अब किसान चक्कर लगा रहा है।

राजस्व विभाग का डाटा मैनेजमेंट फेल
राज्य स्तर पर धान खरीदी में राजस्व अभिलेखों की एंट्री का काम बेकार हो गया है। 21-22 में भी पंजीयन के दौरान ऐसी ही समस्या आई थी। जैसे-तैसे खरीदी पूरी कराई गई। इसी गफलत का लाभ उठाकर कई समितियों में गड़बड़ी की गई। अब फिर से वही परेशानी शुरू हो गई है। बताया जा रहा है कि राज्य शासन ने पंजीयन को आसान बनाने के बजाय और भी कठिन बना दिया है। इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। पंजीयन का काम अभी तक चल रहा है।