सेनेटरी पैड बनाने के लिए महिला समूह को लोन के बदले दी गई थी मशीन, अब बैंक से मिल रहा रिकवरी नोटिस
रायगढ़। महिला समूहों की आजीविका बढ़ाने के लिए काम कम शोर ज्यादा होने लगा है। किसी की आजीविका बढ़ रही है या नहीं, यह तो नहीं मालूम लेकिन एक समूह पर पांच लाख का कर्ज चढ़ गया है। समूह को कलेक्टर का ड्रीम प्रोजेक्ट बताकर लोन के जरिए सेनेटरी पैड बनाने की मशीन खरीदवाई गई। अब हालात यह हैं कि मशीन बंद पड़ी है और समूह को 5 लाख का कर्ज चुकाने बैंक का नोटिस मिल रहा है।












यह मामला महिला समूहों के लिए नजीर है जिन्हें आड़े- टेढ़े कामों में झोंककर आय बढ़ाने के सब्जबाग दिखाए जाते हैं। जब समूह काम करने लगते हैं तो उनके प्रोडक्ट को बाजार नहीं मिलता क्योंकि इसके लिए कोई प्लानिंग नहीं होती। सरकारी फंड को वेस्ट करने के लिए महिला समूहों में इन्वेस्ट किया जा रहा है। चार साल पहले रायगढ़ जनपद अंतर्गत ग्राम डूमरपाली में गायत्री स्व सहायता समूह को सेनेटरी पैड बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। उन्हें इसकी ऑटोमेटिक मशीन भी मुंबई से खरीदकर दिलाने का भी वादा किया गया। समूह से कहा गया कि वे इसका एक प्रोजेक्ट बनाकर बैंक से लोन ले लें। गायत्री महिला समूह के सदस्यों से कहा गया कि यह कलेक्टर का ड्रीम प्रोजेक्ट है इसलिए उन्हें हर तरह की सहायता मिलेगी, तब रायगढ़ कलेक्टर यशवंत सिंह थे।





मशीन और रॉ मटेरियल के लिए 4 लाख रुपए का लोन छग राज्य ग्रामीण बैंक से लिया गया। महिला समूह को मुंबई से मंगवाकर मशीन दी गई जहां से ट्रेनिंग देने शेख अफजल नामक व्यक्ति आया था। कुछ महीनों तक महिला समूह बिना मुनाफे के काम करती रही । बाद में हालात खराब होने लगी तो स्वच्छ भारत मिशन से रिवॉल्विंग फंड के नाम पर एक लाख रुपए और दिए गए। सेनेटरी पैड तो बनाए गए जिसे आशा ब्रांडनेम दिया गया। बीच में कोविड के समय काम बंद करना पड़ा। तब महिला समूह ने मास्क बनाने का काम किया। इससे हुई आय समूह सदस्यों ने आपस में बांट ली। लेकिन किसी ने बैंक ऋण को चुकाने पर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद समूह में ही खींचतान मची तो सभी सदस्यों ने प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिए। अब मशीन तो उसी जगह पड़ी है और शटर डालकर ताला लगा दिया गया है। इधर ग्रामीण बैंक से कर्ज वसूली के लिए नोटिस दिया जा रहा है।



ऑटोमेटिक के बजाय दी मैन्युअल मशीन
कलेक्टर का ड्रीम प्रोजेक्ट बताकर महिला समूह को पांच लाख का लोन लेने पर विवश कर दिया गया। जिला पंचायत और जनपद पंचायत की ओर से इस काम में सहायता के नाम पर केवल मशीन खरीदी करवाई गई। इसमें भी बड़ा गोलमाल है। महिलाओं ने तय किया था कि वे ऑटोमेटिक मशीन लेंगे। लोन भी उसी हिसाब से लिया गया। जब भुगतान हो गया और मशीन रवाना हो गई तो बताया गया कि मशीन मैन्युअल है। मजबूरी में महिला समूह ने उसी मशीन पर काम किया। लेकिन प्रोडक्ट बेचने के लिए कोई योजना नहीं बनाई गई।
1 ट्रेनर का खर्च भी समूह ने उठाया
इस मामले में कई हैरतअंगेज खुलासे हुए हैं। महिला समूह के लिए मशीन की खरीदी मुंबई की कंपनी से हुई। वहां से मशीन रायपुर पहुंची और फिर रायगढ़ । ट्रेनिंग देने के लिए मुंबई से अफजल नामक आदमी आया, जिसके साथ रायपुर से भी एक सहयोगी पहुंचा। दोनों के रायगढ़ आने-जाने का खर्च भी ‘समूह से ही वसूला गया। बताया जा रहा है कि मुंबई से फ्लाईट का किराया भी महिलाओं ने ही दिया। अब न तो मशीन चल रही है और न ही समूह बचा है। केवल बैंक का नोटिस आता जा रहा है।
