धान उपार्जन केंद्रों में चल रही जबर्दस्त सेटिंग, सबको बचाने में लगे डीआरसीएस, इस साल भी फूटेगा कोई बड़ा घोटाला
रायगढ़। धान उपार्जन केंद्रों में मोटा और सरना धान का खेल चरम पर है। मोटे धान के डीओ पर सरना धान की डील की जा रही है। भले ही सरकार ने दोनों किस्म के धान का अनुपात तय किया है लेकिन इसको कोई नहीं मान रहा है। कई समितियों में ऐसे मामले सामने आने के बाद भौतिक सत्यापन का आदेश जारी किया गया है।












सरकार ने समितियों में धान उपार्जन के लिए सरना, मोटा और पतले धान का अनुपात तय किया है। हाल ही में खाद्य विभाग ने छिछोरउमरिया समिति के उपार्जन केंद्र नावापारा ब में औचक जांच की थी। धान का भौतिक सत्यापन किए जाने पर पता चला था कि ऑनलाइन खरीदी पत्रक में दर्ज सरना धान की मात्रा से 949 बोरा मतलब 379.60 क्विंटल अधिक पाया गया। केंद्र में मोटा धान के नाम पर सरना धान की खरीदी की जा रही थी। कई स्टेक में मोटा और सरना धान एक साथ रखे गए थे। जबकि दोनों को अलग-अलग रखा जाना था। चपले में भी इसी तरह की गड़बड़ी की गई है।





ऑनलाइन रिकॉर्ड के अनुसार सरना धान 588 बोरी होना चाहिए लेकिन फड़ में 4105 बोरी पाया गया। 3517 बोरी सरना धान अधिक पाया गया। जबकि मोटा धान 4653 बोरी के स्थान पर केवल 1900 बोरी पाया गया। मोटा धान 2753 बोरी कम पाया गया। इस जांच के बाद खाद्य विभाग ने किसी दूसरी समिति में जांच नहीं की। दरअसल मोटा धान के नाम पर सरना खरीदी होने के पीछे राइस मिलरों की लॉबी है। राइस मिलर सरना धान की ज्यादा मांग करते हैं और इसके लिए अतिरिक्त भुगतान करते हैं। कई और समितियों में ऐसी ही शिकायतें आईं। शासन के अनुपात के मुताबिक खरीदी करने के बजाय सरना की खरीदी ज्यादा की गई है। रायगढ़ और पुसौर की समितियों में ऐसा ज्यादा हुआ है। इसे देखते हुए अब सभी समितियों का भौतिक सत्यापन करने का आदेश दिया गया है।



सांप निकलने के बाद लकीर पीट रहे
धान खरीदी में पिछले साल इतने बड़े घोटाले होने के बाद भी सहकारिता विभाग, खाद्य विभाग और मार्कफेड की नींद नहीं खुली। उप पंजीयक सहकारी संस्थाएं ने तो एक तरह से समितियों को खुली छूट दे दी है। गबन करने वालों को संरक्षण देने और गड़बड़ी की शिकायत आने पर मामला दबाने का काम किया जा रहा है। भौतिक सत्यापन भी तब किया जा रहा है जब आधे से अधिक धान का उठाव हो चुका है।
