– राजेश पटनायक
रायगढ़ विधानसभा जो कभी बाबूजी रामकुमार अग्रवाल के जमीनी जनसंपर्क से कांग्रेस राज में सोशलिस्ट सीट रही। कालान्तर में उनके कांग्रेस प्रवेश के पश्चात् कांग्रेस के गढ़ में बदल गई। वर्ष 1980 से 2003 के पूर्व तक कृष्ण कुमार गुप्ता लगातार इस सीट से विजयी होते रहे। इस दौरान उन्होंने बीरबल गुप्ता, पी. के. तामस्कर, संतोष राय, विजय अग्रवाल, रोशन लाल सभी को पटखनी दी। राम रथ यात्रा के पश्चात् निरन्तर मजबूत होती भाजपा को दो युवा तुर्कों की जोड़ी मिली थे। विजय एवं रोशन, दांत काटी रोटी का संबंध या दोनों में साथ में मिला कुमार दिलीप सिंह जूदेव का अदम्य साहस जिसने खरसिया उपचुनाव में राजनीति के चाणक्य मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को पानी पिला दिया था। यद्यपि कुमार साहब चुनाव हार गये थे पर अर्जुन सिंह जीत के बाद भी जीत का जुलूस नहीं निकाल पाए।












वर्ष 1993 में विजय अग्रवाल एवं 1998 में महज 1884 वोट से रोशनलाल की खेमराज अग्रवाल की वजह से हार के बाद भी वर्ष 2003 में भाजपा पूरे जोशो खरोश के साथ चुनावी मैदान में उतरी। इस बार उसके प्रत्याशी बने जशपुर के राजा रणविजय सिंह किन्तु दो ही दिन प्रचार करने के बाद उन्होंने चुनाव लडऩे से इन्कार कर दिया, तब विजय अग्रवाल राजी हुए उन्हें प्रत्याशी बनाया गया। विजय अग्रवाल ने अप्रत्याशित रूप से 5 बार के विधायक कृष्ण कुमार गुप्ता को धूल चटा दी। इस चुनाव के बाद कृष्ण कुमार गुप्ता का राजनैतिक वजूद खत्म हो गया और साथ ही खत्म हो गई विजय-रोशन की अभिन्न दोस्ती, जनसंघ के दिनों के लोगों का वर्चस्व। इसी दौरान कांग्रेस के युवा राजनीति के अनेक चेहरे भाजपा में शामिल हुए। सुभाष पाण्डेय, गुरूपाल भल्ला, श्रीकांत सोमावार, मुकेश जैन भाजपा के राष्ट्रवाद एवं हिन्दुत्व की लहर से प्रभावित होकर भाजपा में शामिल होकर रायगढ़ में भाजपा को और मजबूत किया पर विजय-रोशन की आपसी टकराहट ने इन कर्मठ कार्यकर्ताओं की मेहनत पर पानी फेर दिया। वर्ष 2008 में सरिया विधानसभा विलोपित होने के पश्चात् भाजपा से कांग्रेस में शामिल विधायक डॉ. शक्रजीत नायक ने आपसी झगड़े में फंसे विजय अग्रवाल को आसानी से पराजित कर दिया।





अब आया रोशनलाल का युग – संगठन क्षमता में बेजोड़ रोशनलाल 2008 के चुनावी हार को भुलाकर संगठन मजबूत करते रहे। राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल एवं सह संगठन मंत्री सौदान सिंह के साथ पूरे पांच वर्ष संगठन मजबूत करने में जुटे रहे। इसका परिणाम भी प्राप्त हुआ। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में उन्हें प्रत्याशी बनाया गया और रोशनलाल ने कद्दावर विधायक डॉ. शक्राजीत नायक को 20000 से अधिक वोटों से हरा दिया, वस्तुत: रोशनलाल संगठन के योग्य व्यक्ति थे। उनकी सांगठनिक क्षमता अद्वितीय थी, यह ठीक है कि वे विधायक बने पर उन्हें चुनावी राजनीति में उतारना उचित प्रतीत नहीं होता, वे स्पष्ट वक्ता थे, कटु से कटु शब्द भी साफ-साफ बोल लेते थे। उनमें पाखंड नहीं था।



ये सारे अच्छे गुण चुनावी राजनीति में अवगुणों में गिने जाते हैं। इसी वजह से उनके मित्रों की संख्या कम और विरोधियों की संख्या अधिक होती गई। दूसरी ओर उनके पूर्व मित्र विजय अग्रवाल ने उन्हीं से सीख लेते हुए पूरे पांच वर्ष संगठन में सक्रिय रहे अपनी जड़ें मजबूत करते रहे। अब आया 2018 का चुनावी वर्ष। रोशन और विजय दोनों ने दावेदारी ठोंक दी। संगठन के सामने उसके अपने सर्वे थे। एक बार तो भाजपा प्रत्याशी के रूप में विजय अग्रवाल का नाम भी टी. वी. पर प्रचारित हो गया। पर कहते है कि राष्ट्रीय सह संगठन सौदान सिंह ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर रोशनलाल को प्रत्याशी बना दिया, अमूमन भाजपा में ऐसा कभी नहीं होता। भाजपा में प्रभारी निष्पक्ष पार्टी की जीत के लिये योग्य प्रत्याशी को वरीयता देते हैं किसी भी व्यक्तिगत संबंधों से उपर उठकर पर दुर्भाग्य से रोशनलाल को टिकट मिली, विजय अग्रवाल निर्दलीय खड़े हो गए। परिणाम सभी को ज्ञात है जितने वोट लेकर डॉ. शक्रजीत नायक हारे थे लगभग उतने वोट पाकर उनके पुत्र प्रकाश नायक जीत गये भाजपा के 50 प्रतिशत से उपर वोट दो हिस्सों में बंट गए।
अब अगला चुनाव इसी वर्ष नवम्बर में है सभी के मन में सवाल है इस बार भाजपा प्रत्याशी कौन होगा, रोशनलाल के असमय देहांत से भाजपा संगठन में भारी खालीपन आ गया है। आज उनकी सांगठनिक क्षमता का कोई व्यक्ति जिले में नहीं है। चुनावी राजनीति के हिसाब से एक दावेदार कम हो गया पर विगत पांच साल में केलो में काफी पानी बह चुका। कई नए दावेदार सामने आ रहे हैं। डॉ. प्रकाश मिश्रा, ओ. पी. चौधरी, उमेश अग्रवाल, विलीस गुप्ता, गौतम अग्रवाल आदि इनके अलावा विजय अग्रवाल तो हैं ही उधर सौदान सिंह केन्द्रीय नेतृत्व से खफा ख्ल रहे हैं। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर एक सुलझे हुए संगठन के व्यक्ति हैं, रायगढ़ भाजपा कार्यकर्ताओं के मन में अनेक सवाल है?
क्षमा कीजियेगा एक सवाल तो ये भी है कि क्या टिकट विजय-रोशन तक ही सीमित है। पर संगठन की भी मजबूरी है उसे अपने आकलन से जीतने योग्य प्रत्याशी को ही टिकट देना है तो कौन होगा प्रत्याशी थोड़ा विश्लेषण कर लें। विश्लेषण करने से पहले हम स्पष्ट समझ लें, रायगढ़ विधानसभा के चार खण्ड हैं। पूर्वांचल (लोईंग, जामगांव) क्षेत्र रायगढ़ निगम क्षेत्र, पुसौर विकासखण्ड के क्षेत्र महानदी पार क्षेत्र। इनमें निगम क्षेत्र छोड़ दिया जाए तो शेष तीनों क्षेत्र उडिय़ा भाषी हैं पर अब तक के चुनावी परिणाम में सिद्ध हुआ है कि भाषाई जातीयता का जीतने से कोई संबंध नहीं है। अब हम जातिगत तौर पर विचार करें तो अग्रसेन समाज, सिख समाज के अलावा कोलता समाज, अघरिया समाज, मुख्य प्रभावकारी जाति वर्ग हैं। उत्कल ब्राम्हण समाज की अत्यंत कम है उनसे पांच गुना आबादी तो उडिय़ा दलित समाज की है जिनके छोटे-छोटे प्रतिनिधि हैं जो ज्यादा असरदार हैं। २००३ में कोलता समाज से विराजेश्वर प्रधन ने निर्दलीय के रूप में खड़े होकर भाजपा प्रत्याशी जगन्नाथ पाणिग्राही को तीसरे स्थान पर धकेल कर २१५०० से ज्यादा वोट लेकर कोलता समाज की ताकत दिखा दी थी।
अब हम संभावित प्रत्याशियों का विश्लेषण करें, डॉ. प्रकाश मिश्रा एक विनम्र व्यवहार कुशल, विद्वान राजनीतिक रूप से परिपक्व प्रत्याशी हो सकते हैं। यदि भाजपा संगठन एकजुट इनके साथ खड़ा हुआ तो जीत जाएंगे पर भाजपा संगठन उनके लिये एकजुट होगा, ये पवन साय जी के लिये यक्ष प्रश्न है।
विलिस गुप्ता कोलता समाज के युवा प्रत्याशी है जैसे ही ये प्रत्याशी घोषित होते हैं ध्रुवीकरण हो जाएगा पूरा सक्षम संपन्न अघरिया समाज इनके विरूद्ध खड़ा हो जाएगा।
ओ. पी. चौधरी एक युवा, राजनीतिक परिपक्व व्यक्ति है पर वे खरसिया विधानसभा पर ही केन्द्रित करें तो बेहतर होगा। उमेश अग्रवाल और गौतम अग्रवाल को अभी अपनी क्षमता साबित करना शेष है। बच गए विजय अग्रवाल जिन्होंने सब कुछ साबित कर दिया है पर एक बार साबित कर दिया है पर एक बार निर्दलीय लड़कर एक दाग भी लगा लिया है। गनीमत है कि वे चुनावी राजनीति में हैं जहां आना जाना लगा रहता है संगठन में होते तो खत्म हो चुके होते।
कुल मिलाकर डॉ. प्रकाश मिश्रा और विजय अग्रवाल दो ही प्रत्याशी फिलहाल नजर आते है तो आगामी विधान सभा में भाजपा की नैया पार लगा सकते हैं पर ये तो जनवरी चल रहा है। अभी तो केलो नदी में बहुत पानी बहना बाकी है।
