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Home | अशेष आशीष का विस्तृत आकाश : शहीद नंदकुमार पटेल के पिता स्व. महेन्द्र सिंह पटेल

अशेष आशीष का विस्तृत आकाश : शहीद नंदकुमार पटेल के पिता स्व. महेन्द्र सिंह पटेल

भारत-भारती गांवों में बसती है। भारत के असंख्य किसान इनके लाडले बेटे हैं। शहीद नंदकुमार पटेल के पिता स्व. महेन्द्र सिंह पटेल इसी भारतीय किसान की अस्मिता के प्रतीक थे। खेतों एवं कृषि कार्य के प्रति समर्पित, श्रम की मूल्यवत्ता का सम्मान करने वाले और एक औसत किसान की सादगी भरी जिंदगी जीने वाले स्व. महेन्द्र सिंह पटेल, जैसे भारतीय किसान की ही प्रतिछवि थे। गौंटिया परिवार के होने के बावजूद वे किसानों के सच्चे हमदर्द और हमराह थे। वे जीवन पर्यन्त ऐसे ही बने रहे।

एकता की गंगा का अवतरण
स्व. महेन्द्र सिंह पटेल गांव की एकता को ही गांव की समृद्धि का आधार मानते थे। वे जानते थे कि भारत के गांवों की यह नियति है कि राजस्व के झगड़ों के कारण गांव की एकता खंडित होती रही है। यह एक अनूठी और अविश्वसनीय सी लगने वाली बात है कि ग्राम नंदेली में भूमि संबंधी राजस्व के झगड़े नहीं हुए। स्व. महेन्द्र सिंह पटेल ने समझाइश देकर यह व्यवस्था भी दी कि जमीन पर जिसका वास्तविक कब्जा है, जमीन उसी की मानी जायेगी। भले ही पटवारी का नक्शा-खसरा कुछ भी कहता हो। दिलचस्प बात यह कि गांव वालों ने स्व. महेन्द्र सिंह पटेल की यह व्यवस्था स्वीकार की। स्व. पटेल ने एक कदम और आगे बढ़ कर किसानों की जमीनों की आपसी चकबंदी कराई जिससे विवाद की संभावना ही नहीं बची। स्व. महेन्द्र सिंह पटेल की इन व्यवस्थाओं के कारण ग्राम नंदेली का अपना एक सामूहिक चरित्र बना। एकता बलवती हुई। इसी एकता के निर्मल पर्यावरण के कारण गांव में कृषि-समृद्धि आई। ग्राम नंदेली में एकता की गंगा का अवतरण, इस युग के भगीरथ स्व. महेन्द्र सिंह पटेल ने किया था।

संवेदना से स्पंदित हृदय
स्व. महेन्द्र सिंह पटेल के भीतर गहन संवेदना से धडक़ता कोमल हृदय था जो किसी के दर्द, किसी की फि क्र से सीधा जुड़ता था। उनकी भरसक कोशिश होती कि वे लोगों की चिंता, विवाद, समस्याएं आमने-सामने बिठाकर निपटा दें। उनकी कही बात हर पक्ष स्वीकारता भी था। वे स्वयं तो ऐसी ही कोशिशों में होते थे लेकिन अपने यशस्वी पुत्र नंद कुमार पटेल की ऐसी ही कोशिशों से बेहद प्रसन्न होते। इस होनहार बेटे नंदकुमार की सरपंच की, फि र विधायक की भूमिका और अंतत: मध्यप्रदेश शासन में मंत्री बनने के बाद उन्हें लगा कि उनके सेवाकार्य का, पुत्र नंदकुमार द्वारा व्यापक विस्तार हो गया है। उनके भीतर के पिता को बहुत अच्छा लगता था कि जन सामान्य अपनी तकलीफ और अन्य सहायता के लिये नंदकुमार से मिलते हैं। उनका वात्सल्य इस तथ्य से विभोर हो उठता कि उनका योग्य पुत्र लोगों की तकलीफें दूर करने में समर्थ है। उनके देहांत से ग्राम नंदेली ही नहीं, बल्कि आस-पास कई गांवों की आंखें नम थीं। अपनी धरती, अपने खेतों और गांव से बहुत प्यार करने वाले धरतीपुत्र महेन्द्र सिंह पटेल अनंत-आकाश यात्रा में चले गये थे जहां से कोई लौट कर नहीं आता।

वात्सल्य का अमृत कलश, मां स्व. इंदुमती देवी
मां इंदुमती को गहरी धार्मिकर्ता, संस्कारों की विरासत से मिली थी। बिना पूजा-पाठ किये उन्होंने कभी अन्न-जल ग्रहण नहीं किया। इसी आस्तिकता ने उन्हें अपार उदारता दी। वे खुले हाथ से दान-पुण्य करतीं। ससुराल में उन्हें छोटी बहुरिया का आत्मीय संबोधन मिला। अपनी संपूर्ण गरिमा और समर्पण से उन्होंने अपना दायित्व निभाया। उनके लिये उनका यह परिवार ही सब कुछ था। विधाता ने जब उनसे पुत्री-सुख छीन लिया तो उन्होंने अपना संपूर्ण वात्सल्य अपनी भतीजी छत्रकुमारी पर उड़ेल दिया। युवराज सिंह तो उनके लाडले दामाद रहे। उनके वात्सल्य के उदार विस्तार का यह कोमल साक्ष्य है। परिवार के बुजुर्ग भोलाराम गौंटिया मुहावरों की भाषा में बताते है कि कोई एक बहू तो घर ला बोहा दे थे और कोई एक बहू घर ल बोह लेथे। छोटी बहुरिया ने सचमुच पूरे परिवार के भार को अपने कांधों पर बोह लिया था।

विविधवर्णी वात्सल्य
मां इंदुमती तो जैसे वात्सल्य की प्रतिरूप थीं। वर्षों पहले इस सिलसिले में हुई बातचीत में कीर्तिशेष नंदकुमार पटेल ने मुझसे कहा था कि मां ममता का मीठा सागर थीं। मां इंदुमती की लाडली बहु श्रीमती नीला देवी ने बेहद उदास स्वर में कहा था मेरी तो मां ही चली गई। उनके रहने से हमारे सिर पर स्नेह भरे हाथ का स्पर्श अनुभव होता रहता था। चिं. दिनेश और चि. उमेश ने बताया था कि दादी मांं से हम लोग बहुत बतियाते थे। परिहास में उनसे शादी, बारात और ऐसे ही दिलचस्प विषयों पर बातें कर लेते थे। परिहास भरे संबंधों की यह चांदनी अब बिखर गई हैं। इसी प्रकार उनकी दोनों लाडली पौत्रियां आयु. सरोजनी और आयु. शशि ने कहा था कि दादी मां तो हमारी सीनियर फ्रें ड थीं। उन्हे पारम्परिक छत्तीसगढ़ खान-पान अच्छा लगता था। चावल की बनी रोटी ‘पनपुरवा‘ ठेठरी, चउकटा आदि नमकीन व्यंजन उन्हें विशेष प्रिय थे। चूंकि पढ़ाई के कारण हमे ज्यादा समय बाहर रहना पड़ता था अत: वे हम दोनों की बहुत फि क्र करती थीं। गर्मी की छुट्टियों मेें नंदेली आने पर, घर के बड़े से आंगन में, नीले आसमान के नीचे बिछे पलंग पर हम उनके दायें-बायें पसर जाते। फि र वे खूब सारी कहानियां सुनाती। सरोजनी के अनुसार दादी मां बहुत ‘ब्राड थिंकिंग‘ वाली स्त्री थीं। शशि ने बताया था कि पैर छूने पर आशीर्वाद देती थीं कि खूब पढ़ो लिखो और डॉक्टर बनो। सचमुच उनका आशीर्वाद फ लित हुआ और शशिकला डॉक्टर बनीं। उन दिनों चि. दिनेश दिल्ली में एम. बी. ए., सरोजनी भोपाल में बी. फ ार्मा. और चि. उमेश बीआईटी भिलाई में इंजीनियरिंग में अध्ययनरत थे।

फि क्रमंद वात्सल्य
नंदकुमार को मध्यप्रदेश में जब मंत्रीपद का गौरव-दायित्व मिला तो पिता स्व. महेन्द्र के साथ मां इंदुमती भी बेहद हर्षित और गर्वित थीं। यद्यपि वे साक्षर नहीं थीं लेकिन घर में अखबार आते ही वे कदम सिंह से पढ़वातीं और ध्यान से सारी खबर सुनतीं। इस तरह अपने यशस्वी मंत्री बेटे की हर उपलब्धियों और हर जिम्मेदारियों पर उनकी दृष्टि रहती। रायगढ़-खरसिया दौरे में नंदकुमार अपने क्षेत्र से जनसंपर्क कर देर रात तक नंदेली लौटते। मांं इंदुुमती का फि क्रमंद वात्सल्य तब तक जागता रहता। पटेल परिवार के आत्मीय दिलीप पांडेय और शिव राजपूत के प्रति उनका विशेष लगाव था। शिव राजपूत बताते हैं कि मुख्यमंत्री अजीत जोगी के नंदेली प्रवास के समय, भोजन उपरांत वे मां से छत्तीसगढ़ी में बतियाते रहे। वात्सल्य की यह चांदनी 19 मार्च 2003 की भोर में अनंत के आकाश में सदा के लिए बिखर गई।

प्रो. अम्बिका वर्मा