रायगढ़। बैंकिंग सेक्टर में गिरती साख और धराशायी होते शेयर बाजार के बीच अडाणी ग्रुप के लिए कई मुश्किलें पैदा हो गई हैं। इसका असर रायगढ़ जिले पर होने वाला है। जिले में पांच कोल माइंस प्रोजेक्ट हैं जो अडाणी इंटरप्राइजेस के भरोसे हैं। अब इन खदानों में होने वाला निवेश रुक सकता है।
रायगढ़ जिले में पिछले पांच सालों में अगर किसी एक कंपनी ने सबसे ज्यादा निवेश किया है या सबसे ज्यादा प्रोजेक्ट हासिल किए हैं तो वह अडाणी समूह ही है। एक तरह कोरबा वेस्ट पावर प्लांट का अधिग्रहण करने के बाद कंपनी के कदम नहीं रुके। रायगढ़ में औद्योगिक निवेश की संभावनाओं को देखकर अडाणी ग्रुप ने न केवल पावर सेक्टर बल्कि कोयला खनन परियोजनाओं को भी लक्ष्य बनाया। गुजरात स्टेट इलेक्ट्रिसिटी कॉर्पोरेशन को आवंटित गारे पेलमा सेक्टर-1, महाराष्ट्र स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी को आवंटित गारे पेलमा सेक्टर-2 और छग स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी को आवंटित गारे पेलमा सेक्टर-3 का एमडीओ अडाणी इंटरप्राइजेस ने ही हासिल किए। एक साथ तीन अलग-अलग राज्यों को आवंटित कोयला खदानों को हासिल करने से
रायगढ़ जिले में अडाणी ने धमाकेदार तरीके से कदम जमाए। इसके बाद अंबुजा सीमेंट के अधिग्रहण के कारण रायगढ़ की गारे पेलमा 4/8 माइंस भी अडाणी ग्रुप की हो चुकी है। हाल ही में एसईसीएल की पेलमा माइंस का एमडीओ भी अडाणी इंटरप्राइजेस ने ही हासिल किया है। कंपनी की आक्रामक नीति के कारण ही रायगढ़ में पांच कोयला खदानें हाथ में हैं। इन पांचों खदानों को मिलाकर प्रतिवर्ष करीब 20 मिलियन टन कोयला खनन का लक्ष्य हासिल करना था। इस बीच हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट ने सब कुछ उलट-पलट कर दिया है। इन खदानों में अरबों का निवेश होना है जो अब अधर में लटक गया है। संभव है कि किसी प्रोजेक्ट से कंपनी हाथ पीछे ले।
डीबी पावर डील से आगे का अनुमान
कोरबा वेस्ट के अधिग्रहण के बाद अडाणी का टारगेट डीबी पावर और एसकेएस का अधिग्रहण करने का था। गिरती साख के कारण डीबी पावर डील रद्द हो चुकी है। एसकेएस का मामला भी पटरी से उतर चुका है। यह इस बात के संकेत हैं कि बाजार में मचे उथल-पुथल का असर अडाणी समूह पर बेहद गहराई तक हुआ है। आने वाले दिनों में रायगढ़ के चार कोल माइनिंग प्रोजेक्ट में भी कुछ हलचल मच सकती है।
