रासायनिक खाद पर निर्भरता खत्म करने की कोशिश, गुणवत्ता सही नहीं होने की शिकायतें
रायगढ़। गोधन न्याय योजना के तहत खरीदे गए गोबर से गौठानों वर्मी कम्पोस्ट बनाया गया। इसे बेचने के लिए सहकारी समितियों को टारगेट दिया गया। इस साल खरीफ सीजन में समितियों से करीब 74 हजार क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट बेचा जा चुका है।
सरकार ने गोधन न्याय योजना के जरिए जैविक खेती की तरफ कदम बढ़ाए थे। इसके क्रियान्वयन में कई जगहों पर भारी चूक हुई। गोबर खरीदकर गौठानों में वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया गया। महिला समूहों के माध्यम से वर्मी कम्पोस्ट बनाने का हुआ। इसकी खपत के लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं बनाई गई थी इसलिए सहकारी समितियों को आवंटित कर दिया गया। समितियों के एकाउंट से वर्मी कम्पोस्ट की राशि काटी जाने लगी और किसानों को लोन के साथ वर्मी कम्पोस्ट भी अनिवार्य रूप से दिया गया। इस बार खरीफ सीजन में 73,192 क्विं. कम्पोस्ट किसानों को दिया जा चुका है। इसके बदले कम्पोस्ट निर्माता समूहों को 7.31 करोड़ रुपए का भुगतान किया जा चुका है। वर्मी कम्पोस्ट की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठे हैं। समितियों में करीब 1.15 लाख किसान पंजीकृत होते हैं लेकिन वर्मी कम्पोस्ट लेने वालों की संख्या 44171 ही है। किसानों ने वर्मी कम्पोस्ट की क्वालिटी सही नहीं होने की शिकायत की है। वर्मी कम्पोस्ट लेने पर ही रासायनिक खाद दी जा रही थी।
आंकड़ों से विरोधाभास
वर्मी कम्पोस्ट की मात्रा बढऩे पर रासायनिक खाद की खपत कम होने का अनुमान था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस बार यूरिया करीब 32 हजार टन और डीएपी करीब 12 हजार टन की खपत हो चुकी है। किसानों को वर्मी कम्पोस्ट दस रुपए किलो की दर से दिया गया।
