मौजूदा खदानों की क्षमता होगी दोगुनी, तीन नई माइंस खुलने से एसईसीएल मांड-रायगढ़ कोलफील्ड के प्रोडक्शन में उछाल, रेलवे के जरिए होगा परिवहन
रायगढ़। अगले दो सालों में मांड-रायगढ़ कोल फील्ड की तस्वीर ही बदल जाएगी। आने वाले समय में बिजली की मांग बढऩे के साथ कोयले की डिमांड भी कई गुना बढ़ जाएगी। इसलिए पुरानी माइंस के साथ नई माइंस डेवलप करने पर काम चल रहा है। वर्तमान में 12.25 मिलियन टन कोयला प्रतिवर्ष निकाला जा रहा है जो अगले साल तक 21 मिलियन टन हो जाएगा। नई खदानें शुरू होने के बाद यह करीब 50 मिलियन टन प्रतिवर्ष तक हो जाएगा।
देश में साल दर साल बिजली की मांग में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इसे पूरा करने के लिए कोयले के अलावा कोई बड़ा विकल्प नहीं है। इसलिए कोल इंडिया तेजी से कोयला खदानों का विकास करने पर काम कर रहा है। एसईसीएल रायगढ़ क्षेत्र में भी खदानों की क्षमता वृद्धि के साथ नई माइंस को डेवलप करने पर काम चल रहा है। वर्तमान में रायगढ़ में छाल माइंस 3.5 एमटी, बरौद 3.5 एमटी, जामपाली 3 एमटी और बिजारी 2.25 एमटी प्रतिवर्ष उत्पादन क्षमता है। सभी खदानों का माइनिंग प्लान रिनीवल हो रहा है। एसईसीएल ने बरौद को 10 एमटी, जामपाली को 4.5 एमटी और छाल को 6 एमटी प्रतिवर्ष बढ़ाने के लिए प्रस्ताव भेज दिया है। कोयला उत्पादन के क्षेत्र में इन दिनों बड़ी हलचल मची हुई है। चारों पुरानी माइंस का उत्पादन ही अकेले 20.5 एमटी हो जाएगा जो वर्तमान से करीब दो गुना है। अचानक से उत्पादन क्षमता को दोगुना करने के पीछे आगामी वर्षों में बिजली की बढ़ती मांग ही है। इसके साथ तीन तई खदानें पेलमा, दुर्गापुर और पोरडा-चिमटापानी भी शुरू हो जाएंगी जिसके लिए भूअर्जन प्रारंभ हो चुका है।
तीन खदानों में ही 31 एमटी उत्पादन
इसके अलावा कोल मिनिस्ट्री ने एसईसीएल को पेलमा 15 एमटी, दुर्गापुर 6 एमटी और पोरडा-चिमटापानी 10 एमटी क्षमता वाली तीन माइंस भी आवंटित की थी। पेलमा का एमडीओ हो चुका है जबकि बाकी दोनों की प्रक्रिया चल रही है। भूअर्जन भी जल्द प्रारंभ होना है। इन तीनों खदानों को अगले दो साल में शुरू किया जाना है। इसके बाद रायगढ़ एरिया की उत्पादन क्षमता 51.5 मिलियन टन प्रतिवर्ष हो जाएगी जो वर्तमान की तुलना में चार गुना अधिक है।
साइलो और साइडिंग का काम भी पूरा
ऐसा नहीं है कि कोयला उत्पादन बढऩे से सडक़ के जरिए परिवहन बढ़ेगा। ज्यादा उत्पादन होने पर लोडिंग और ट्रांसपोर्टिंग भी तेज करना होगा। इसके लिए करीब चार रेलवे साइडिंग चलेंगे। कोयले को लोड करने के लिए साइलो का निर्माण जारी है। साइलो एक तरह का ऑटोमेटिक सिस्टम होता है जिसमें तय मात्रा में कोयला चंद मिनटों में रैक में लोड हो जाता है। बरौद और छाल में साइलो का काम जल्द पूरा होगा। अभी रोजाना दो रैक लोड हो रही है जो दो सालों में 25 हो जाएगी। रोजाना एक लाख टन कोयले का डिस्पैच हो सकेगा।
