रायगढ़। जिले में मिलर लॉबी अफसरों के सिर पर नाच रही है। व्यवस्था इतनी दूषित हो चुकी है कि कितनी भी गड़बड़ी हो जाए एक भी मिलर पर हाथ डालने से परहेज किया जाता है। जिन मिलरों ने हजारों क्विंटल धान उठाकर चावल जमा नहीं किया, अब उनको ब्लैक लिस्ट करने का नोटिस दिया गया है। इसमें 12 राईस मिलरों के नाम हैं। धान लेकर चावल जमा नहीं करने वाले राइस मिलरों पर दूसरे जिलों में छापेमार कार्रवाई शुरू हो चुकी है। कुछ जगहों पर तो एफआईआर भी दर्ज किया जा रहा है। लेकिन रायगढ़ जिले में सन्नाटा पसरा हुआ है। वर्ष 21-22 के कस्टम मिलिंग के तहत उठाए गए धान का चावल कई मिलरों ने नहीं दिया है।
एक साल में भी चावल जमा नहीं कर पाने वाले मिलरों पर कोई सख्ती नहीं की जाती। 21-22 में मिलरों को करीब 57.34 लाख क्विं. धान दिया गया था। चावल जमा करने की अंतिम तिथि 30 नवंबर थी जो खत्म हो चुकी है। कस्टम बताया जा रहा है कि दो दिन पहले ही कस्टम मिलिंग की समीक्षा वीसी में की गई। इसमें निर्देश दिए गए हैं कि जिन मिलरों ने धान लेकर चावल नहीं दिया है, उन पर सख्त कार्रवाई की जाए। रायगढ़ जिले में 12 मिलर ऐसे हैं जिन्होंने 42,200 क्विंटल चावल जमा नहीं किया है। इनको डीएमओ ने नोटिस दिया है। इनकी बैंक गारंटी से धान की राशि वसूलने के लिए कार्रवाई की जा रही है। हालांकि अभी भी राइस मिलरों को समय दिए जाने की वकालत की जा रही है। 12 मिलरों की सूची में रायगढ़ जिले और सारंगढ़-बरमकेला के मिलर हैं।
फ्री सेल करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं
राइस मिलरों को पहले सरकारी धान की मिलिंग करनी है। उसके बाद ही वे फ्री सेल का कारोबार कर सकते हैं। रायगढ़ के कई मिलर ऐसे हैं जो बिना अनुमति के फ्री सेल का कारोबार करते हैं। जांजगीर-चांपा और रायपुर के कई मिलरों की मदद से कारोबार होता है। इन पर कार्रवाई तो दूर जांच तक नहीं की जाती। तीन साल में एक भी मिल में जाकर जांच नहीं की गई है। सवाल यह है कि उठाया गया सरकारी धान कहां गया।
फर्जी खरीदी-फर्जी उठाव
कस्टम मिलिंग की इस कथा का एक सिरा उपार्जन केंद्रों से जुड़ा हुआ है। अंतिम दिनों में धान सिर्फ कागजों में बचा होता है लेकिन दबाव में इसे जीरो शॉर्टेज कराया जाता है। दरअसल फर्जी खरीदी के कारण धान तो आता नहीं और केवल एंट्री की जाती है। इसलिए अंत में भारी मात्रा की कमी होती है। इस धान को जीरो करने के लिए प्रबंधक और मिलरों के बीच सेटिंग कराई जाती है। प्रबंधक एक तय रकम मिलर को देता है जिसके बदले मिलर डीओ लगाकर उठाव करना दिखाता है। हकीकत यह है कि न तो गाड़ी लगती है, न धान उठता है। केवल ऑनलाइन धान जीरो हो जाता है।
